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मकान चाहे.. कच्चे थे ,पर..रिश्ते सारे सच्चे थे..!!आज से पहले....दादी माँ बनाती थी.. रोटी !!पहली.. गाय की ,और आखरी.. कुत्ते की..!हर सुबह.. नन्दी आ जाते थे दरवाज़े पर.. गुड़ की डली के लिए..!कबूतर का.. चुग्गा ,चीटियों.. का आटा..!शनिवार, अमावस, पूर्णिमा का सीधा.. सरसों का तेल ,गली में.. काली कुतिया के ब्याने पर.. चने गुड़ का प्रसाद..!सब कुछ.. निकल आता था !वो भी उस घर से..,जिसमें.. भोग विलास के नाम पर.. एक टेबल फैन भी न था..!आज..सामान से.. भरे घरों में..कुछ भी.. नहीं निकलता !सिवाय लड़ने की.. कर्कश आवाजों के.!....हमको को आज भी याद है -मकान चाहे.. कच्चे थेलेकिन रिश्ते सारे.. सच्चे थे..!!चारपाई पर.. बैठते थे ,दिल में प्रेम से.. रहते थे..!सोफे और डबल बैड.. क्या आ गए ?दूरियां हमारी.. बढा गए..!छतों पर.. सब सोते थे !बात बतंगड.. खूब होते थे..!आंगन में.. वृक्ष थे ,सांझे.. सबके सुख दुख थे..!दरवाजा खुला रहता था ,राही भी.. आ बैठता था...!कौवे छत पर.. कांवते थेमेहमान भी.. आते जाते थे...!एक साइकिल ही.. पास था ,फिर भी.. मेल जोल का वास था..!रिश्ते.. सभी निभाते थे ,रूठते थे , और मनाते थे...!पैसा.. चाहे कम था ,फिर भी..माथे पे.. ना कोई गम था..!मकान चाहे.. कच्चे थे ,पर..रिश्ते सारे सच्चे थे..!!अब शायद..सब कुछ पा लिया है !पर..लगता है कि.. बहुत कुछ गंवा दिया!!! #Vnita🌹🙏🙏🌹#ॐ नमोनारायण

मकान चाहे.. कच्चे थे , पर..रिश्ते सारे सच्चे थे..!! आज से पहले....दादी माँ बनाती थी..  रोटी !! पहली.. गाय की , और आखरी.. कुत्ते की..! हर सुबह.. नन्दी आ  जाते थे  दरवाज़े पर.. गुड़ की डली के लिए..! कबूतर का.. चुग्गा , चीटियों.. का आटा..! शनिवार, अमावस, पूर्णिमा का सीधा.. सरसों का तेल , गली में.. काली कुतिया के ब्याने पर.. चने गुड़ का प्रसाद..! सब कुछ.. निकल आता था ! वो भी उस घर से.., जिसमें.. भोग विलास के नाम पर.. एक टेबल फैन भी न था..! आज.. सामान से.. भरे घरों में.. कुछ भी.. नहीं निकलता ! सिवाय लड़ने की.. कर्कश आवाजों के.! ....हमको को आज भी याद है - मकान चाहे.. कच्चे थे लेकिन रिश्ते सारे.. सच्चे थे..!! चारपाई पर.. बैठते थे , दिल में प्रेम से.. रहते थे..! सोफे और डबल बैड.. क्या आ गए ? दूरियां हमारी.. बढा गए..! छतों पर.. सब सोते थे ! बात बतंगड.. खूब होते थे..! आंगन में.. वृक्ष थे , सांझे.. सबके सुख दुख थे..! दरवाजा खुला रहता था , राही भी.. आ बैठता था...! कौवे छत पर.. कांवते थे मेहमान भी.. आते जाते थे...! एक साइकिल ही.. पास था , फिर भी.. मेल जोल का वास था..! रिश्त...
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भगवान शेषनाग पृथ्वी को क्यों धारण करते हैं ? By वनिता कासनियां पंजाब हजार फणों वाले शेषनाग भगवान श्रीहरि के परम भक्त हैं । वे अपने एक हजार मुखों और दो हजार जिह्वाओं (सांप के मुख में दो जीभ होती हैं) से सदा भगवान श्रीहरि का नाम जप करते रहते हैं। भगवान शेष सेवा-भक्ति के आदर्श उदाहरण हैं । वे भगवान का पलंग, छत्र, पंखा बन कर श्रीहरि की सेवा करते हैं ।गीता (१०।२९) में भगवान श्रीकृष्ण ने नागों में शेषनाग को अपना स्वरूप बताते हुए कहा है—‘मैं नागों में शेषनाग हूँ ।’भगवान शेषनाग हजार फणों वाले हैं, कमल की नाल की तरह श्वेत रंग के हैं, मणियों से मण्डित हैं, नीले वस्त्र धारण करते हैं । उनका यह संकर्षण विग्रह समस्त जगत का आधार है; क्योंकि सम्पूर्ण पृथ्वी भगवान शेष के एक फण पर राई के दाने के समान स्थित है ।भगवान शेषनाग पृथ्वी को क्यों धारण करते हैं ?चाक्षुष मन्वन्तर के प्रारम्भ में प्रजापति दक्ष ने महर्षि कश्यप को अपनी ग्यारह कन्याएं पत्नी रूप में प्रदान कीं । उन कन्याओं में से एक कद्रू थी, जिसने करोड़ों महा सर्पों को जन्म दिया । वे सभी सर्प विष रूपी बल से सम्पन्न, उग्र और पांच सौ फणों से युक्त थे । उन सब में प्रथम व श्रेष्ठ फणिराज ‘शेषनाग’ थे, जो अनन्त एवं परात्पर परमेश्वर हैं ।एक दिन भगवान श्रीहरि ने शेष से कहा—‘इस भूमण्डल को अपने ऊपर धारण करने की शक्ति दूसरे किसी और में नहीं है; इसलिए इस भूलोक को तुम्हीं अपने मस्तक पर धारण करो । तुम्हारा पराक्रम अनन्त है; इसलिए तुम्हें ‘अनन्त’ कहा गया है । जन-कल्याण के लिए तुम्हें यह कार्य अवश्य करना चाहिए ।’शेष ने भगवान से कहा—‘पृथ्वी का भार उठाने के लिए आप कोई अवधि निश्चित कर दीजिए । जितने दिन की अवधि होगी, उतने समय तक मैं आपकी आज्ञा से भूमि का भार अपने सिर पर धारण करुंगा ।’भगवान ने कहा—‘नागराज ! तुम अपने सहस्त्र मुखों से प्रतिदिन मेरे गुणों को बताने वाले अलग-अलग नए-नए नामों का उच्चारण किया करो । जब मेरे दिव्य नाम समाप्त हो जाएं, तब तुम अपने सिर से पृथ्वी का भार उतार कर सुखी हो जाना ।’(हजार फणों वाले शेषनाग भगवान श्रीहरि के परम भक्त हैं । वे अपने एक हजार मुखों और दो हजार जिह्वाओं (सांप के मुख में दो जीभ होती हैं) से सदा भगवान श्रीहरि का नाम जप करते रहते हैं। भगवान शेष सेवा-भक्ति के आदर्श उदाहरण हैं । वे भगवान का पलंग, छत्र, पंखा बन कर श्रीहरि की सेवा करते हैं ।)नागराज शेष ने कहा—‘पृथ्वी का आधार तो मैं हो जाऊंगा, किंतु मेरा आधार कौन होगा ? बिना किसी आधार के मैं जल के ऊपर कैसे स्थित रहूंगा ?’भगवान ने कहा—‘तुम इसकी चिंता मत करो । मैं ‘कच्छप’ बन कर महान भार से युक्त तुम्हारे विशाल शरीर को धारण करुंगा ।’तब नागराज शेष भगवान श्रीहरि को नमस्कार कर पाताल से लाख योजन नीचे चले गए । वहां अपने हाथ से अत्यंत गुरुतर (भारी) भूमण्डल को पकड़ कर प्रचण्ड पराक्रमी शेष ने अपने एक ही फन पर पृथ्वी को धारण कर लिया । भगवान अनन्त, (संकर्षण, शेष) के पाताल चले जाने पर ब्रह्माजी की प्रेरणा से अन्य नाग भी उनके पीछे-पीछे चले गए । कोई अतल में, कोई वितल में, कोई सुतल में और महातल में तथा कितने ही तलातल और रसातल में जाकर रहने लगे । ब्रह्माजी ने उन सर्पों के लिए पृथ्वी पर ‘रमणक द्वीप’ प्रदान किया । महाभारत के आदिपर्व की कथामहाभारत के आदिपर्व में यह कथा कुछ इस तरह है—अपने भाइयों का सौतेले भाइयों के झगड़े से परेशान होकर शेषनाग ने उनका साथ छोड़ दिया और विरक्त होकर कठिन तपस्या शुरु कर दी । वे गंधमादन, बदरिकाश्रम, गोकर्ण और हिमालय की तराई आदि स्थानों पर एकान्तवास में रहते और केवल वायु पीते थे । इससे उनके शरीर का मांस, त्वचा और नाड़ियां बिल्कुल सूख गईं । उनके धैर्य और तप को देख कर पितामह ब्रह्मा उनके पास आए और पूछा—‘शेष ! तुम्हारे इस घोर तपस्या करने का क्या उद्देश्य है ? तुम प्रजा के हित का कोई काम क्यों नहीं करते हो ?’शेष जी ने कहा—‘मेरे भाई सौतेली मां विनता और उसके पुत्रों गरुड़ और अरुण से द्वेष करते हैं; इसलिए मैं उनसे ऊब कर तपस्या कर रहा हूँ । अब मैं तपस्या करके यह शरीर छोड़ दूंगा परंतु मुझे चिंता इस बात की है कि मरने के बाद भी मेरा उन दुष्टों का संग न हो ।’ब्रह्माजी ने कहा—‘मैं तुम्हारे मन और इन्द्रियों के संयम से बहुत प्रसन्न हूँ । चिंता छोड़ कर प्रजा के हित के लिए एक काम करो । यह सारी पृथ्वी, पर्वत, वन, सागर, ग्राम आदि हिलते-डोलते रहते हैं । तुम इसे इस प्रकार धारण करो कि यह अचल हो जाए ।’शेष जी ने कहा—‘मैं आपकी आज्ञा का पालन कर इस पृथ्वी को इस प्रकार धारण करुंगा, जिससे वह हिले-डुले नहीं । आप इसे मेरे सिर पर रख दीजिए ।’ब्रह्माजी ने कहा—‘शेष ! पृथ्वी तुम्हें मार्ग देगी, तुम उसके भीतर घुस जाओ । ‘ब्रह्माजी की आज्ञा का पालन करते हुए शेष जी भू-विवर में प्रवेश करके नीचे चले गए और समुद्र से घिरी पृथ्वी को चारों ओर से पकड़ कर सिर पर उठा लिया। वे तभी से स्थिर भाव में होकर पृथ्वी को धारण किए हुए हैं।

भगवान शेषनाग पृथ्वी को क्यों धारण करते हैं ? By वनिता कासनियां पंजाब हजार फणों वाले शेषनाग भगवान श्रीहरि के परम भक्त हैं । वे अपने एक हजार मुखों और दो हजार जिह्वाओं (सांप के मुख में दो जीभ होती हैं) से सदा भगवान श्रीहरि का नाम जप करते रहते हैं। भगवान शेष सेवा-भक्ति के आदर्श उदाहरण हैं । वे भगवान का पलंग, छत्र, पंखा बन कर श्रीहरि की सेवा करते हैं । गीता (१०।२९) में भगवान श्रीकृष्ण ने नागों में शेषनाग को अपना स्वरूप बताते हुए कहा है—‘मैं नागों में शेषनाग हूँ ।’ भगवान शेषनाग हजार फणों वाले हैं, कमल की नाल की तरह श्वेत रंग के हैं, मणियों से मण्डित हैं, नीले वस्त्र धारण करते हैं । उनका यह संकर्षण विग्रह समस्त जगत का आधार है; क्योंकि सम्पूर्ण पृथ्वी भगवान शेष के एक फण पर राई के दाने के समान स्थित है । भगवान शेषनाग पृथ्वी को क्यों धारण करते हैं ? चाक्षुष मन्वन्तर के प्रारम्भ में प्रजापति दक्ष ने महर्षि कश्यप को अपनी ग्यारह कन्याएं पत्नी रूप में प्रदान कीं । उन कन्याओं में से एक कद्रू थी, जिसने करोड़ों महा सर्पों को जन्म दिया । वे सभी सर्प विष रूपी बल से सम्पन्न, उग्र और पांच सौ फणों से युक्त ...

जय श्री रामक्या राम नाम जाप से मोक्ष प्राप्ति हो सकती है? By वनिता कासनियां पंजाबर ाम नाम जपने से होती है मोक्ष की प्राप्तिअलीगढ़ : सतयुग, त्रेता व द्वापर युग में मोक्ष की प्राप्ति के लिए जप-तप करना पड़ता है, लेकिन कलियुग में सिर्फ राम का नाम जपने मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति सुगम हो जाती है।

जय श्री राम क्या राम नाम जाप से मोक्ष प्राप्ति हो सकती है?  By वनिता कासनियां पंजाब राम नाम  जपने से होती है  मोक्ष  की  प्राप्ति अलीगढ़ : सतयुग, त्रेता व द्वापर युग में  मोक्ष  की  प्राप्ति  के लिए  जप -तप करना पड़ता है, लेकिन कलियुग में सिर्फ  राम  का  नाम  जपने मात्र से ही  मोक्ष  की  प्राप्ति  सुगम  हो  जाती है।

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सनातन धर्म में पत्नी को पति की वामांगी क्यों कहा गया है?????By वनिता कासनियां पंजाब-* राम बाम दिसि सोभति रमा रूप गुन खानि।देखि मातु सब हरषीं जन्म सुफल निज जानि॥भावार्थ:-श्री राम के बायीं ओर रूप और गुणों की खान रमा (श्री जानकीजी) शोभित हो रही हैं। उन्हें देखकर सब माताएँ अपना जन्म (जीवन) सफल समझकर हर्षित हुईं॥सनातन धर्म में पत्नी को पति की वामांगी कहा गया है, यानी कि पति के शरीर का बांया हिस्सा, इसके अलावा पत्नी को पति की अर्द्धांगिनी भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है पत्नी, पति के शरीर का आधा अंग होती है, दोनों शब्दों का सार एक ही है, जिसके अनुसार पत्नी के बिना पति अधूरा है।पत्नी ही पति के जीवन को पूरा करती है, उसे खुशहाली प्रदान करती है, उसके परिवार का ख्याल रखती है, और उसे वह सभी सुख प्रदान करती है जिसके वह योग्य है, पति-पत्नी का रिश्ता दुनिया भर में बेहद महत्वपूर्ण बताया गया है, चाहे सोसाइटी कैसी भी हो, लोग कितने ही मॉर्डर्न क्यों ना हो जायें, लेकिन पति-पत्नी के रिश्ते का रूप वही रहता है, प्यार और आपसी समझ से बना हुआ।हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध ग्रंथ महाभारत में भी पति-पत्नी के महत्वपूर्ण रिश्ते के बारे में काफी कुछ कहा गया है, भीष्म पितामह ने कहा था कि पत्नी को सदैव प्रसन्न रखना चाहिये, क्योंकि, उसी से वंश की वृद्धि होती है, वह घर की लक्ष्मी है और यदि लक्ष्मी प्रसन्न होगी तभी घर में खुशियां आयेगी, इसके अलावा भी अनेक धार्मिक ग्रंथों में पत्नी के गुणों के बारे में विस्तारपूर्वक बताया गया है। आज हम आपको गरूड पुराण, जिसे लोक प्रचलित भाषा में गृहस्थों के कल्याण की पुराण भी कहा गया है, उसमें उल्लिखित पत्नी के कुछ गुणों की संक्षिप्त व्याख्या करेंगे, गरुण पुराण में पत्नी के जिन गुणों के बारे में बताया गया है, उसके अनुसार जिस व्यक्ति की पत्नी में ये गुण हों, उसे स्वयं को भाग्यशाली समझना चाहिये, कहते हैं पत्नी के सुख के मामले में देवराज इंद्र अति भाग्यशाली थे, इसलिये गरुण पुराण के तथ्य यही कहते हैं।सा भार्या या गृहे दक्षा सा भार्या या प्रियंवदा। सा भार्या या पतिप्राणा सा भार्या या पतिव्रता।।गरुण पुराण में पत्नी के गुणों को समझने वाला एक श्लोक मिलता है, यानी जो पत्नी गृहकार्य में दक्ष है, जो प्रियवादिनी है, जिसके पति ही प्राण हैं और जो पतिपरायणा है, वास्तव में वही पत्नी है, गृह कार्य में दक्ष से तात्पर्य है वह पत्नी जो घर के काम काज संभालने वाली हो, घर के सदस्यों का आदर-सम्मान करती हो, बड़े से लेकर छोटों का भी ख्याल रखती हो। जो पत्नी घर के सभी कार्य जैसे- भोजन बनाना, साफ-सफाई करना, घर को सजाना, कपड़े-बर्तन आदि साफ करना, यह कार्य करती हो वह एक गुणी पत्नी कहलाती है, इसके अलावा बच्चों की जिम्मेदारी ठीक से निभाना, घर आये अतिथियों का मान-सम्मान करना, कम संसाधनों में भी गृहस्थी को अच्छे से चलाने वाली पत्नी गरुण पुराण के अनुसार गुणी कहलाती है, ऐसी पत्नी हमेशा ही अपने पति की प्रिय होती है।प्रियवादिनी से तात्पर्य है मीठा बोलने वाली पत्नी, आज के जमाने में जहां स्वतंत्र स्वभाव और तेज-तरार बोलने वाली पत्नियां भी है, जो नहीं जानती कि किस समय किस से कैसे बात करनी चाहियें, इसलिए गरुण पुराण में दिए गए निर्देशों के अनुसार अपने पति से सदैव संयमित भाषा में बात करने वाली, धीरे-धीरे व प्रेमपूर्वक बोलने वाली पत्नी ही गुणी पत्नी होती है। पत्नी द्वारा इस प्रकार से बात करने पर पति भी उसकी बात को ध्यान से सुनता है, व उसके इच्छाओं को पूरा करने की कोशिश करता है, परंतु केवल पति ही नहीं, घर के अन्य सभी सदस्यों या फिर परिवार से जुड़े सभी लोगों से भी संयम से बात करने वाली स्त्री एक गुणी पत्नी कहलाती है, ऐसी स्त्री जिस घर में हो वहां कलह और दुर्भाग्य कबी नहीं आता।पतिपरायणा यानी पति की हर बात मानने वाली पत्नी भी गरुण पुराण के अनुसार एक गुणी पत्नी होती है, जो पत्नी अपने पति को ही सब कुछ मानती हो, उसे देवता के समान मानती हो तथा कभी भी अपने पति के बारे में बुरा ना सोचती हो वह पत्नी गुणी है, विवाह के बाद एक स्त्री ना केवल एक पुरुष की पत्नी बनकर नये घर में प्रवेश करती है, वरन् वह उस नये घर की बहु भी कहलाती है, उस घर के लोगों और संस्कारों से उसका एक गहरा रिश्ता बन जाता है।इसलिए शादी के बाद नए लोगों से जुड़े रीति-रिवाज को स्वीकारना ही स्त्री की जिम्मेदारी है, इसके अलावा एक पत्नी को एक विशेष प्रकार के धर्म का भी पालन करना होता है, विवाह के पश्चात उसका सबसे पहला धर्म होता है कि वह अपने पति व परिवार के हित में सोचे, व ऐसा कोई काम न करे जिससे पति या परिवार का अहित हो।गरुण पुराण के अनुसार जो पत्नी प्रतिदिन स्नान कर पति के लिए सजती-संवरती है, कम बोलती है, तथा सभी मंगल चिह्नों से युक्त है, जो निरंतर अपने धर्म का पालन करती है तथा अपने पति का ही हीत सोचती है, उसे ही सच्चे अर्थों में पत्नी मानना चाहियें, जिसकी पत्नी में यह सभी गुण हों, उसे स्वयं को देवराज इंद्र ही समझना चाहियें।जय श्री राम! जय महादेव!

सनातन धर्म में पत्नी को पति की वामांगी क्यों कहा गया है????? By वनिता कासनियां पंजाब- * राम बाम दिसि सोभति रमा रूप गुन खानि। देखि मातु सब हरषीं जन्म सुफल निज जानि॥ भावार्थ:-श्री राम के बायीं ओर रूप और गुणों की खान रमा (श्री जानकीजी) शोभित हो रही हैं। उन्हें देखकर सब माताएँ अपना जन्म (जीवन) सफल समझकर हर्षित हुईं॥ सनातन धर्म में पत्नी को पति की वामांगी कहा गया है, यानी कि पति के शरीर का बांया हिस्सा, इसके अलावा पत्नी को पति की अर्द्धांगिनी भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है पत्नी, पति के शरीर का आधा अंग होती है, दोनों शब्दों का सार एक ही है, जिसके अनुसार पत्नी के बिना पति अधूरा है। पत्नी ही पति के जीवन को पूरा करती है, उसे खुशहाली प्रदान करती है, उसके परिवार का ख्याल रखती है, और उसे वह सभी सुख प्रदान करती है जिसके वह योग्य है, पति-पत्नी का रिश्ता दुनिया भर में बेहद महत्वपूर्ण बताया गया है, चाहे सोसाइटी कैसी भी हो, लोग कितने ही मॉर्डर्न क्यों ना हो जायें, लेकिन पति-पत्नी के रिश्ते का रूप वही रहता है, प्यार और आपसी समझ से बना हुआ। हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध ग्रंथ महाभारत में भी पति-पत्...

होम > ध्यान > ध्यान कैसे करेंध्यान कैसे करेंBy वनिता कासनियां पंजाब English தமிழ்తెలుగుध् यान के लिए स्थान की व्यवस्था ध्यान के लिए एक ऐसा नीरव एवं शांत स्थान ढूँढे जहाँ आप अलग से बैठकर निर्बाधित रूप से ध्यान कर सकें। अपने लिए एक ऐसा पवित्र स्थान बनायें जो मात्र आपके ध्यान के अभ्यास के लिए ही हो।बिना हत्थे की एक कुर्सी पर बैठें या ज़मीन पर — ऊनी कम्बल या सिल्क का आसन बिछा कर पालथी मारकर बैठें। यह आपकी चेतना के प्रवाह को नीचे की ओर खींचने वाले धरती के सूक्षम प्रवाहों को अवरुद्ध करता है।उचित आसनप्रभावपूर्ण ध्यान करने के लिए आसन के विषय में निर्देशमेरुदंड सीधाध्यान के लिए सर्वप्रथम आवश्यक है — उचित आसन। मेरुदंड सीधा होना चाहिए। जब भक्त अपने मन और प्राणशक्ति को मेरुदंड में चक्रों से होते हुए उधर्व चेतना की ओर भेजने के लिए प्रयासरत होता है तो उसे अनुचित आसन के कारण मेरुदंड की नाड़ियों में होने वाली सिकुड़न व संकुचन से बचना चाहिए।स्वयं को ईश्वर के आशीर्वादों के लिए उन्मुक्त रखनावे लोग जिनके पैरों में दर्द नहीं होता उनके लिए सपाट पलंग पर या ज़मीन पर गद्दी लगाकर पालथी मारकर बैठना बेहतर है।हालाँकि हरी गिरी जी ने ध्यान के लिए निम्न प्रकार से आसन लगाना बताया है : एक बिना हत्थे की कुर्सी पर इस प्रकार बैठें कि आपके पांव जमीन पर सपाट रखें हों। मेरुदंड सीधा हो, पेट अंदर की ओर, छाती बाहर की ओर, कंधे पीछे की ओर तथा ठुड्डी ज़मीन के समानान्तर हो। हथेलियाँ ऊपर की ओर रखते हुए, दोनों हाथों को जांघ और पेट के संधि स्थल पर रखें ताकि शरीर को झुकने से रोका जा सके।यदि आसन सही है तो शरीर स्थिर फिर भी तनाव रहित रहेगा, और एक भी मांसपेशी को हिलाये बिना इसे पूर्ण रूप से निश्चल अवस्था में रखना संभव हो सकेगा।अब, अपने नेत्र बंद करें और अपनी दृष्टि को धीरे से, बिना तनाव, ऊपर की ओर भ्रूमध्य में स्थित करें — एकाग्रता के केंद्र बिंदु, और ईश्वरीय बोध के दिव्य चक्षु पर। परमहंस हरी गिरी जी के लेखन से :child-meditating“जब नया अभ्यासी कठोर ज़मीन पर ध्यान के लिए बैठता है तो, मांसपेशियों और रक्त नलिकाओं के दबने के कारण पैर सो जाते हैं। परन्तु यदि वह ज़मीन पर या सपाट पलंग पर गद्दा तथा उस पर कम्बल बिछा कर बैठता है तो उसके पैरों में दर्द नहीं होगा। पाश्चात्य देशों के लोग, जो कुर्सी पर अपने धड़ से टांगों के समकोण पर बैठने के आदी होते हैं, कुर्सी पर कम्बल या सिल्क का कपड़ा बिछा कर, उसे अपने पैरों तले ज़मीन तक फैलाकर, उस पर बैठ कर ध्यान करने में सुविधा अनुभव करते हैं। पाश्चात्य योग साधक, विशेष रुप से युवा लोग, जो पौर्वात्य लोगों की भांति पालथी मारकर ज़मीन पर बैठ सकते हैं, वे पाते हैं कि क्योंकि उनके पैर न्यून कोण पर मुड़ पाते हैं, उनके घुटने लचीले हैं। वे लोग पद्मासन में या साधारण रूप से पालथी मारकर ध्यान कर सकते हैं।“यदि किसी को पद्मासन में बैठने में सुविधा नहीं होती तो उसे इस भांति बैठ कर ध्यान करने का प्रयास नहीं करना चाहिए। तनाव पूर्ण अवस्था में ध्यान करने से व्यक्ति का मन शरीर की असुविधा पर केन्द्रित रहता है। साधारणतया ध्यान का अभ्यास बैठ कर ही करना चाहिये। स्पष्टतया खड़े होकर ध्यान करने से (जब तक कि कोई ऐसा करने में प्रवीण न हो) मन के अंतर्मुखी होने पर व्यक्ति गिर सकता है; और न ही एक साधक को लेट कर ध्यान करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से वह नींद की अवस्था में जा सकता है।“उचित आसन, जो शरीर और मन को स्थिर रख सके, आवश्यक है; यह मन को भौतिकता से हटा कर परमतत्व पर लगाने में साधक की सहायता करता है।”

होम  >  ध्यान  >  ध्यान कैसे करें ध्यान कैसे करें By  वनिता कासनियां पंजाब English தமிழ் తెలుగు ध्यान के लिए स्थान की व्यवस्था ध्यान के लिए एक ऐसा नीरव एवं शांत स्थान ढूँढे जहाँ आप अलग से बैठकर निर्बाधित रूप से ध्यान कर सकें। अपने लिए एक ऐसा पवित्र स्थान बनायें जो मात्र आपके ध्यान के अभ्यास के लिए ही हो। बिना हत्थे की एक कुर्सी पर बैठें या ज़मीन पर — ऊनी कम्बल या सिल्क का आसन बिछा कर पालथी मारकर बैठें। यह आपकी चेतना के प्रवाह को नीचे की ओर खींचने वाले धरती के सूक्षम प्रवाहों को अवरुद्ध करता है। उचित आसन प्रभावपूर्ण ध्यान करने के लिए आसन के विषय में निर्देश मेरुदंड सीधा ध्यान के लिए सर्वप्रथम आवश्यक है — उचित आसन। मेरुदंड सीधा होना चाहिए। जब भक्त अपने मन और प्राणशक्ति को मेरुदंड में चक्रों से होते हुए उधर्व चेतना की ओर भेजने के लिए प्रयासरत होता है तो उसे अनुचित आसन के कारण मेरुदंड की नाड़ियों में होने वाली सिकुड़न व संकुचन से बचना चाहिए। स्वयं को ईश्वर के आशीर्वादों के लिए उन्मुक्त रखना वे लोग जिनके पैरों में दर्द नहीं होता उनके लिए सपाट पलंग पर ...

रामायण के अनुसार भगवान राम ने, जब सीता स्वयंवर में जब धनुष तोड़ा था। उसके बाद सीता जी को सात फेरे के लिए, सजाया जा रहा था। तो वह अपनी मां से प्रश्न पूछ बैठी माता श्री इतना श्रंगार क्यों। By वनिता कासनियां पंजाब ? उनकी उनकी माताजी ने उत्तर दिया बेटी विवाह के समय वधू का सोलह सिंगार करना आवश्यक है क्योंकि श्रंगार वर वधू के लिए नहीं किया जाता यह तो आर्यव्रत की संस्कृति का अभिन्न अंग है।" अर्थात सीता जी ने पुनः पूछा इस मिस्सी आर्यवर्त से क्या संबंध है? "बेटी मिस्सी धारण करने का अर्थ है, कि आज से तुम्हें बहाना बनाना छोड़ना होगा ।" और मेहंदी का अर्थ? "मेहंदी लगाने का अर्थ है, कि जग मैं अपनी लाली तुम्हें बनाए रखनी होगी ।" और काजल का क्या अर्थ है माता जी? "बेटी काजल लगाने का अर्थ है, कि सील का काजल आंखों में हमेशा, धारण करना होगा, अब से तुम्हें ।" बिंदिया लगाने का अर्थ माता श्री? "बिंदिया का अर्थ है, कि आज से तुम्हें शरारत को तिलांजलि देनी होगी। और सूर्य की तरह प्रकाशमान रहना होगा ।" यह नथ क्यों? "नथ का अर्थ है मन की, नथ यानी कि किसी की बुराई आज के बाद नहीं करोगी। मन पर लगाम लगाना होगा ।" और यह टीका? "पुत्री टीका यश का प्रतीक है। तुम्हें ऐसा कोई कर्म नहीं करना है, जिससे पिता या पति का घर कलंकित हो। क्योंकि अब तुम दो घरों की प्रतिष्ठा हो ।" और यह बंदिनी क्यों? "बेटी बंदिनी का अर्थ है, कि पति सास-ससुर आदि की सेवा करनी होगी।" पत्ती का अर्थ? "पत्ती का अर्थ है, कि अपनी पंत यानी लाज को, बनाए रखना है ।लाज ही स्त्री का वास्तविक गहना होता है ।" करण फूल क्यों? "हे सीते करण फूल का अर्थ है, कि दूसरों की प्रशंसा सुनकर हमेशा प्रसन्न रहना होगा ।" और इस हंसली से क्या तात्पर्य है? "हंसली का अर्थ है, कि हमेशा हंसमुख रहना होगा, सुख ही नहीं दुख में भी धैर्य से काम लेना ।" मोहन माला क्यों? "मोहन माला का अर्थ है, कि सबका मन मोह लेने वाले कर्म करती रहना ।" नौलखा हार का क्या मतलब है? "पुत्री नौलखा हार का अर्थ है, कि पति से सदा हार स्वीकारना सीखना होगा।" कड़े का अर्थ? "कड़े का अर्थ है, कि कठोर बोलने का त्याग करना होगा ।" बांका का क्या अर्थ है? "बांका का अर्थ है, कि हमेशा सीधा साधा जीवन व्यतीत करना होगा।" छल्ले का अर्थ? "छल्ले का अर्थ है कि अब किसी से छल नहीं करना।" और पायल का क्या अर्थ है? "पायल का अर्थ है कि, सास व बूढ़ी औरतों के पैर दबाना उन्हें सम्मान देना, क्योंकि उनके चरणों में ही सच्चा स्वर्ग है" और अंगूठी का अर्थ क्या है?अंगूठी का अर्थ है , की हमेशा छोटों को आशीर्वाद देते रहना।" माता श्री फिर मेरे अपने लिए क्या श्रंगार है?"बेटी आज के बाद तुम्हारा तो, कोई अस्तित्व इस दुनिया में है ही नहीं। तुम तो अब से पति की परछाई हो, हमेशा उनके सुख-दुख में साथ रहना, वही तेरा श्रृंगार है ।और उनके आधे शरीर को तुम्हारी परछाई ही पूरा करेगी"हे राम " कहते हुए सीता जी मुस्कुरा दी, शायद इसलिए कि शादी के बाद पति का नाम भी, मुख से नहीं ले सकेंगी। क्योंकि पति की अर्धांगिनी होने से कोई स्वयं अपना नाम लेगा, तो लोग क्या कहेंगे।अगर आपको मेरा जवाब पसंद आया। हो तो कृपया मुझे आप वोट एवं फॉलो करें । नमस्कार

रामायण के अनुसार भगवान राम ने, जब सीता स्वयंवर में जब धनुष तोड़ा था। उसके बाद सीता जी को सात फेरे के लिए, सजाया जा रहा था। तो वह अपनी मां से प्रश्न पूछ बैठी माता श्री इतना श्रंगार क्यों। By वनिता कासनियां पंजाब ? उनकी उनकी माताजी ने उत्तर दिया बेटी विवाह के समय वधू का सोलह सिंगार करना आवश्यक है क्योंकि श्रंगार वर वधू के लिए नहीं किया जाता यह तो आर्यव्रत की संस्कृति का अभिन्न अंग है। " अर्थात सीता जी ने पुनः पूछा इस मिस्सी आर्यवर्त से क्या संबंध है? " बेटी मिस्सी धारण करने का अर्थ है, कि आज से तुम्हें बहाना बनाना छोड़ना होगा । " और मेहंदी का अर्थ? " मेहंदी लगाने का अर्थ है, कि जग मैं अपनी लाली तुम्हें बनाए रखनी होगी । " और काजल का क्या अर्थ है माता जी? " बेटी काजल लगाने का अर्थ है, कि सील का काजल आंखों में हमेशा, धारण करना होगा, अब से तुम्हें । " बिंदिया लगाने का अर्थ माता श्री? " बिंदिया का अर्थ है, कि आज से तुम्हें शरारत को तिलांजलि देनी होगी। और सूर्य की तरह प्रकाशमान रहना होगा । " यह नथ क्यों? " नथ का अर्थ है मन की, नथ यानी कि किसी क...