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हनुमानबाहुकBy समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🙏 श्री गणेशाय नमः🚩श्री जानकीवल्लभो विजयते🚩मदगोस्वामितुलसीदासकृत🚩हनुमानबाहुक🚩 छप्पयसिंधु-तरन, सिय सोच हरन, रबि-बालबरन-तनु।भुज बिसाल, मूरति कराल कालहुको काल जनु॥गहन-दहन-निरदहन लंक निःसंक, बंक-भुव।जातुधान-बलवान-मान-मद-दवन पवनसुव॥कह तुलसीदास सेवत सुलभ, सेवक हित संतत निकट।गुनगनत, नमत, सुमिरत, जपत समन सकल-संकट-बिकट॥1॥ भावार्थ - जिनके शरीर का रंग उदयकाल के सूर्य के समान है, जो समुद्र लाँघकर श्री जानकीजी के शोक को हरने वाले, आजानुबाहु, डरावनी सूरतवाले और मानो काल के भी काल हैं। लंका-रूपी गंम्भीर वन को, जो जलाने योग्य नहीं था, उसे जिन्होंने निःशंक जलाया और जो टेढ़ी भौंहोंवाले तथा बलवान राक्षसों के मान और गर्व का नाश करने वाले हैं, तुलसीदासजी कहते हैं - वे श्रीपवनकुमार सेवा करने पर बड़ी सुगमता से प्राप्त होने वाले, अपने सेवकों की भलाई करने के लिए सदा समीप रहने वाले तथा गुण गाने, प्रणाम करने एवं स्मरण और नाम जपने से सब भयानक संकटों को नाश करने वाले हैं॥1॥ स्वर्न-सैल-संकास कोटि-रबि-तरून-तेज-घन।उर बिसाल, भुजदंड चंड नख बज्र बज्रतन॥पिंग नयन, भृकुटी कराल रसना दसनानन।कपिस केस, करकस लँगूर, खल-दल-बल-भानन॥कह तुलसीदास बस जासु उर मारूतसुत मूरति बिकट।संताप पाप तेहि पुरूष पहिं सपनेहुँ नहिं आवत निकट॥2॥ भावार्थ - वे सुवर्णपर्वत (सुमेरू) के समान शरीरवाले, करोड़ों मध्यान्ह के सूर्य के सदृश अनन्त तेजोराशि, विशालहृदय, अत्यन्त बलवान भुजाओं वाले तथा वज्र के तुल्य नख और शरीर वाले हैं। उनके नेत्र पीले हैं, भौंह, जीभ, दाँत और मुख विकराल हैं, बाल भूरे रंग के तथा पूँछ कठोर और दुष्टों के दल के बल का नाश करने वाली है। तुलसीदासजी कहते हैं- श्री पवनकुमार की डरावनी मूर्ति जिसके हृदय में निवास करती है, उस पुरूष के समीप दुःख और पाप स्वप्न में भी नही आते॥2॥ झुलनापंचमुख-छमुख-भृगुमुख्य भट-असुर-सुर,सर्व-सरि-समर समरत्थ सूरो।बाँकुरो बीर बिरूदैत बिरूदावली,बेद बंदी बदत पैजपूरो॥जासु गुनगाथ रघुनाथ कह, जासु बलबिपुल-जल-भरित जग-जलधि झूरो।दुवन-दल-दमनको कौन तुलसीस है,पवनको पूत रजपुत रूरो॥3॥ भावार्थ - शिव, स्वामिकार्तिक, परशुराम, दैत्य और देवतावृन्द सबके युद्धरूपी नदी से पार जाने में योग्य योद्धा हैं। वेदरूपी वन्दीजन कहते हैं-आप पूरी प्रतिज्ञावाले चतुर योद्धा, बड़े कीर्तिमान और यशस्वी हैं। जिनके गुणों की कथा को रघुनाथजी ने श्रीमुख से कहा तथा जिनके अतिशय पराक्रम से अपार जल से भरा हुआ संसार-समुद्र सूख गया। तुलसी के स्वामी सुन्दर राजपूत (पवनकुमार) के बिना राक्षसों के दल का नाश करने वाला दूसरा कौन है ? (कोई नहीं) ॥3॥ घनाक्षरीभानुसों पढ़न हनुमान गये भानु मन-अनुमानि सिसुकेलि कियो फेरफार सो।पाछिले पगनि गम गगन मगन-मन,क्रमको न भ्रम, कपि बालक-बिहार सो॥कौतुक बिलोकि लोकपाल हरि हर बिधि,लोचननि चकाचौंधी चित्तनि खभार सो।बल कैधौं बीररस, धीरज कै, साहस कै,तुलसी सरीर धरे सबनिको सार सो॥4॥ भावार्थ - सूर्यभगवान के समीप में हनुमानजी विद्या पढ़ने के लिये गये, सूर्यदेव ने मन में बालकों का खेल समझकर बहाना किया (कि मैं स्थिर नहीं रह सकता और बिना आमने-सामने के पढ़ना-पढ़ाना असम्भव है)। हनुमानजी ने भास्कर की ओर मुख करके पीठ की तरफ से पैरों से प्रसन्नमन आकाशमार्ग में बालकों के खेल के समान गमन किया और उससे पाठ्यक्रम में किसी प्रकार का भ्रम नहीं हुआ। इस अचरज के खेल को देखकर इन्द्रादि लोकपाल, विष्णु, रूद्र और ब्रह्मा की आँखें चौंधिया गयीं तथा चित्त में खलबली-सी उत्पन्न हो गयी। तुलसीदास जी कहते हैं-सब सोचने लगे कि यह न जाने बल, न जाने वीररस, न जाने धैर्य, न जाने हिम्मत अथवा न जाने इन सबका सार ही शरीर धारण किये हैं ? ॥4॥ भारतमें पारथके रथकेतु कपिराज,गाज्यो सुनि कुरूराज दल हलबल भो।कहृो द्रोन भीषम समीरसुत महाबीर,बीर-रस-बारि-निधि जाको बल जल भो॥बानर सुभाय बालकेलि भूमि भानु लागि,फलँग फलाँगहूतें घाटि नभतल भो।नाइ-नाइ माथ जोरि-जोरि हाथ जोधा जोहैं,हनुमान देखे जगजीवन को फल भो॥5॥ भावार्थ - महाभारत में अर्जुन के रथ की पताकापर कपिराज हनुमानजी ने गर्जन किया, जिसको सुनकर दुर्योधन की सेना में घबराहट उत्पन्न हो गयी। द्रोणाचार्य और भीष्म-पितामह ने कहा कि ये महाबली पवनकुमार हैं। जिनका बल वीररस रूपी समुद्र का जल हुआ है। इनके स्वाभाविक ही बालकों के खेल के समान धरती से सूर्य तक के कुदान ने आकाश मण्डलों एक पग से कम कर दिया था। सब योद्धागण मस्तक नवा-नवाकर और हाथ जोड़-जोड़कर देखते हैं। इस प्रकार हनुमानजी का दर्शन पाने से उन्हें संसार में जीने का फल मिल गया॥ 5॥ गोपद पयोधि करि, होलिका ज्यों लाई लंक,निपट निसंक परपुर गलबल भो।द्रोन-सो पहार लियो ख्याल ही उखारि कर,कंदुक-ज्यों कपि खेल बेल कैसो फल भो॥संकटसमाज असमंजस भो रामराज,काज जुग-पूगनिको करतल पल भो।साहसी समत्थ तुलसीको नाह जाकी बाँह,लोकपाल पालनको फिर थिर भो॥6॥ भावार्थ - समुद्र को गोखुर के समान करके निडर होकर लंका जैसी (सुरक्षित नगरी को) होलिका के सदृश जला डाला, जिससे पराये (शत्रु के) पुर में गड़बड़ी मच गयी। द्रोण जैसा भारी पर्वत खेल में ही उखाड़ गेंद की तरह उठा लिया, वह कपिराज के लिये बेल फल के समान क्रीड़ा की सामग्री बन गया। रामराज्य मे अपार संकट (लक्ष्मण शक्ति) से असमंजस उत्पनन्नस हुआ (उस समय जिस पराक्रम से) युगसमूह में होने वाला काम पलभर में मुट्ठी में आ गया। तुलसी के स्वामी बड़े साहसी और सामर्थ्यवान है, जिनकी भुजाएँ लोकपालों को पालन करने तथा उन्हें फिर से स्थिरतापूर्वक बसाने का स्थान हुई॥6॥ कमठकी पीठि जाके गोड़निकी गाड़ै मानोनापके भाजन भरि जलनिधि-जल भो।जातुधान-दावन परावनको दुर्ग भयो,महामीनबास तिमि तोमनिको थल भो॥कुंभकर्न-रावन-पयोदनाद-ईंधनकोतुलसी प्रताप जाको प्रबल अनल भो।भीषम कहत मेरे अनुमान हनुमान-सारिखो त्रिकाल न त्रिलोक महाबल भो॥7॥ बाल वनिता महिला आश्रमभावार्थ - कच्छप की पीठ में जिनके पाँव गड़हे समुद्र का जल भरने के लिये मानो नाप के पात्र (बर्तन) हुए। राक्षसों का नाश करते समय वह (समुद्र) ही उनके भागकर छिपने का गढ़ हुआ तथा वही बहुत-से बड़े-बड़े मत्स्यों के रहने का स्थान हुआ। तुलसीदास जी कहते हैं - रावण, कुंभकर्ण और मेघनादरूपी ईंधन को जलाने के निमित्त जिनका प्रताप प्रचण्ड अग्नि हुआ। भीष्म पितामह कहते हैं - मेरी समझ में हनुमान जी के समान अत्यन्त बलवान तीनों काल और तीनों लोकों में कोई नहीं हुआ॥ 7॥

हनुमानबाहुक By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 🙏   श्री गणेशाय नमः🚩 श्री जानकीवल्लभो विजयते🚩 मदगोस्वामितुलसीदासकृत🚩 हनुमानबाहुक🚩   छप्पय सिंधु-तरन, सिय सोच हरन, रबि-बालबरन-तनु। भुज बिसाल, मूरति कराल कालहुको काल जनु॥ गहन-दहन-निरदहन लंक निःसंक, बंक-भुव। जातुधान-बलवान-मान-मद-दवन पवनसुव॥ कह तुलसीदास सेवत सुलभ, सेवक हित संतत निकट। गुनगनत, नमत, सुमिरत, जपत समन सकल-संकट-बिकट॥1॥   भावार्थ - जिनके शरीर का रंग उदयकाल के सूर्य के समान है, जो समुद्र लाँघकर श्री जानकीजी के शोक को हरने वाले, आजानुबाहु, डरावनी सूरतवाले और मानो काल के भी काल हैं। लंका-रूपी गंम्भीर वन को, जो जलाने योग्य नहीं था, उसे जिन्होंने निःशंक जलाया और जो टेढ़ी भौंहोंवाले तथा बलवान राक्षसों के मान और गर्व का नाश करने वाले हैं, तुलसीदासजी कहते हैं - वे श्रीपवनकुमार सेवा करने पर बड़ी सुगमता से प्राप्त होने वाले, अपने सेवकों की भलाई करने के लिए सदा समीप रहने वाले तथा गुण गाने, प्रणाम करने एवं स्मरण और नाम जपने से सब भयानक संकटों को नाश करने वाले हैं॥1॥   स्वर्न-सैल-संकास कोटि-रबि-तरून-तेज-घन। उर बिसाल, भुजदंड च...

*🚩जय श्री सीताराम जी की* 🚩*आप सभी श्रीसीतारामजीके भक्तों को प्रणाम*By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🌹🙏🙏🙏🙏🙏🌹*श्री रामचरित मानस बाल काण्ड*चौपाई :*भूप भवनु तेहि अवसर सोहा।* *रचना देखि मदन मनु मोहा॥**मंगल सगुन मनोहरताई।* *रिधि सिधि सुख संपदा सुहाई॥1॥*भावार्थ:-उस समय राजमहल (अत्यन्त) शोभित हो रहा था। उसकी रचना देखकर कामदेव भी मन मोहित हो जाता था। मंगल शकुन, मनोहरता, ऋद्धि-सिद्धि, सुख, सुहावनी सम्पत्ति॥1॥*जनु उछाह सब सहज सुहाए।* *तनु धरि धरि दसरथ गृहँ छाए॥**देखन हेतु राम बैदेही।* *कहहु लालसा होहि न केही॥2॥*भावार्थ:-और सब प्रकार के उत्साह (आनंद) मानो सहज सुंदर शरीर धर-धरकर दशरथजी के घर में छा गए हैं। श्री रामचन्द्रजी और सीताजी के दर्शनों के लिए भला कहिए, किसे लालसा न होगी॥2॥*जूथ जूथ मिलि चलीं सुआसिनि।* *निज छबि निदरहिं मदन बिलासिनि॥**सकल सुमंगल सजें आरती।* *गावहिं जनु बहु बेष भारती॥3॥*भावार्थ:-सुहागिनी स्त्रियाँ झुंड की झुंड मिलकर चलीं, जो अपनी छबि से कामदेव की स्त्री रति का भी निरादर कर रही हैं। सभी सुंदर मंगलद्रव्य एवं आरती सजाए हुए गा रही हैं, मानो सरस्वतीजी ही बहुत से वेष धारण किए गा रही हों॥3॥*भूपति भवन कोलाहलु होई।* *जाइ न बरनि समउ सुखु सोई॥**कौसल्यादि राम महतारीं।* *प्रेमबिबस तन दसा बिसारीं॥4॥*भावार्थ:-राजमहल में (आनंद के मारे) शोर मच रहा है। उस समय का और सुख का वर्णन नहीं किया जा सकता। कौसल्याजी आदि श्री रामचन्द्रजी की सब माताएँ प्रेम के विशेष वश होने से शरीर की सुध भूल गईं॥4॥दोहा :*दिए दान बिप्रन्ह बिपुल,* *पूजि गनेस पुरारि।**प्रमुदित परम दरिद्र जनु,* *पाइ पदारथ चारि॥345॥*भावार्थ:-गणेशजी और त्रिपुरारि शिवजी का पूजन करके उन्होंने ब्राह्मणों को बहुत सा दान दिया। वे ऐसी परम प्रसन्न हुईं, मानो अत्यन्त दरिद्री चारों पदार्थ पा गया हो॥345॥चौपाई :*मोद प्रमोद बिबस सब माता।**चलहिं न चरन सिथिल भए गाता।**राम दरस हित अति अनुरागीं।* *परिछनि साजु सजन सब लागीं॥1॥*भावार्थ:-सुख और महान आनंद से विवश होने के कारण सब माताओं के शरीर शिथिल हो गए हैं, उनके चरण चलते नहीं हैं। श्री रामचन्द्रजी के दर्शनों के लिए वे अत्यन्त अनुराग में भरकर परछन का सब सामान सजाने लगीं॥1॥*बिबिध बिधान बाजने बाजे।* *मंगल मुदित सुमित्राँ साजे॥**हरद दूब दधि पल्लव फूला।**पान पूगफल मंगल मूला॥2॥*भावार्थ:-अनेकों प्रकार के बाजे बजते थे। सुमित्राजी ने आनंदपूर्वक मंगल साज सजाए। हल्दी, दूब, दही, पत्ते, फूल, पान और सुपारी आदि मंगल की मूल वस्तुएँ,॥2*अच्छत अंकुर लोचन लाजा।* *मंजुल मंजरि तुलसि बिराजा॥**छुहे पुरट घट सहज सुहाए।**मदन सकुन जनु नीड़ बनाए॥3॥*भावार्थ:-तथा अक्षत (चावल), अँखुए, गोरोचन, लावा और तुलसी की सुंदर मंजरियाँ सुशोभित हैं। नाना रंगों से चित्रित किए हुए सहज सुहावने सुवर्ण के कलश ऐसे मालूम होते हैं, मानो कामदेव के पक्षियों ने घोंसले बनाए हों॥3॥*सगुन सुगंध न जाहिं बखानी।* *मंगल सकल सजहिं सब रानी॥**रचीं आरतीं बहतु बिधाना।**मुदित करहिं कल मंगल गाना॥4॥*भावार्थ:-शकुन की सुगन्धित वस्तुएँ बखानी नहीं जा सकतीं। सब रानियाँ सम्पूर्ण मंगल साज सज रही हैं। बहुत प्रकार की आरती बनाकर वे आनंदित हुईं सुंदर मंगलगान कर रही हैं॥4॥दोहा :*कनक थार भरि मंगलन्हि,**कमल करन्हि लिएँ मात।**चलीं मुदित परिछनि करन,* *पुलक पल्लवित गात॥346॥*भावार्थ:-सोने के थालों को मांगलिक वस्तुओं से भरकर अपने कमल के समान (कोमल) हाथों में लिए हुए माताएँ आनंदित होकर परछन करने चलीं। उनके शरीर पुलकावली से छा गए हैं॥346॥क्रमशः अगले अंक में *🚩जय श्री सीताराम जी की* 🚩

*🚩जय श्री सीताराम जी की* 🚩 *आप सभी श्रीसीतारामजीके भक्तों को प्रणाम* By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 🌹🙏🙏🙏🙏🙏🌹 *श्री रामचरित मानस बाल काण्ड* चौपाई : *भूप भवनु तेहि अवसर सोहा।*  *रचना देखि मदन मनु मोहा॥* *मंगल सगुन मनोहरताई।*  *रिधि सिधि सुख संपदा सुहाई॥1॥* भावार्थ:-उस समय राजमहल (अत्यन्त) शोभित हो रहा था। उसकी रचना देखकर कामदेव भी मन मोहित हो जाता था। मंगल शकुन, मनोहरता, ऋद्धि-सिद्धि, सुख, सुहावनी सम्पत्ति॥1॥ *जनु उछाह सब सहज सुहाए।*  *तनु धरि धरि दसरथ गृहँ छाए॥* *देखन हेतु राम बैदेही।*  *कहहु लालसा होहि न केही॥2॥* भावार्थ:-और सब प्रकार के उत्साह (आनंद) मानो सहज सुंदर शरीर धर-धरकर दशरथजी के घर में छा गए हैं। श्री रामचन्द्रजी और सीताजी के दर्शनों के लिए भला कहिए, किसे लालसा न होगी॥2॥ *जूथ जूथ मिलि चलीं सुआसिनि।*  *निज छबि निदरहिं मदन बिलासिनि॥* *सकल सुमंगल सजें आरती।*  *गावहिं जनु बहु बेष भारती॥3॥* भावार्थ:-सुहागिनी स्त्रियाँ झुंड की झुंड मिलकर चलीं, जो अपनी छबि से कामदेव की स्त्री रति का भी निरादर कर रही हैं। सभी सुंदर मंगलद्रव्य एवं आरती सजाए हुए ग...

हनुमानजी ने तोड़ दिया था गरुड़, सुदर्शन और सत्यभामा का अभिमान 🥀🥀🥀🥀जय श्री हनुमानजी🥀🥀🥀🥀By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️🔸भगवान श्रीकृष्ण को विष्णु का अवतार माना जाता है। विष्णु ने ही राम के रूप में अवतार लिया और विष्णु ने ही श्रीकृष्ण के रूप में। श्रीकृष्ण की 8 पत्नियां थीं- रुक्मणि, जाम्बवंती, सत्यभामा, कालिंदी, मित्रबिंदा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा। इसमें से सत्यभामा को अपनी सुंदरता और महारानी होने का घमंड हो चला था तो दूसरी ओर सुदर्शन चक्र खुद को सबसे शक्तिशाली समझता था और विष्णु वाहन गरूड़ को भी अपने सबसे तेज उड़ान भरने का घमंड था।एक दिन श्रीकृष्ण अपनी द्वारिका में रानी सत्यभामा के साथ सिंहासन पर विराजमान थे और उनके निकट ही गरूड़ और सुदर्शन चक्र भी उनकी सेवा में विराजमान थे। बातों ही बातों में रानी सत्यभामा ने व्यंग्यपूर्ण लहजे में पूछा- हे प्रभु, आपने त्रेतायुग में राम के रूप में अवतार लिया था, सीता आपकी पत्नी थीं। क्या वे मुझसे भी ज्यादा सुंदर थीं? भगवान सत्यभामा की बातों का जवाब देते उससे पहले ही गरूड़ ने कहा- भगवान क्या दुनिया में मुझसे भी ज्यादा तेज गति से कोई उड़ सकता है। तभी सुदर्शन से भी रहा नहीं गया और वह भी बोल उठा कि भगवान, मैंने बड़े-बड़े युद्धों में आपको विजयश्री दिलवाई है। क्या संसार में मुझसे भी शक्तिशाली कोई है? द्वारकाधीश समझ गए कि तीनों में अभिमान आ गया है। भगवान मंद-मंद मुस्कुराने लगे और सोचने लगे कि इनका अहंकार कैसे नष्ट किया जाए, तभी उनको एक युक्ति सूझी... भगवान मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे। वे जान रहे थे कि उनके इन तीनों भक्तों को अहंकार हो गया है और इनका अहंकार नष्ट होने का समय आ गया है। ऐसा सोचकर उन्होंने गरूड़ से कहा कि हे गरूड़! तुम हनुमान के पास जाओ और कहना कि भगवान राम, माता सीता के साथ उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। गरूड़ भगवान की आज्ञा लेकर हनुमान को लाने चले गए ।इधर श्रीकृष्ण ने सत्यभामा से कहा कि देवी, आप सीता के रूप में तैयार हो जाएं और स्वयं द्वारकाधीश ने राम का रूप धारण कर लिया। तब श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र को आज्ञा देते हुए कहा कि तुम महल के प्रवेश द्वार पर पहरा दो और ध्यान रहे कि मेरी आज्ञा के बिना महल में कोई भी प्रवेश न करने पाए। सुदर्शन चक्र ने कहा, जो आज्ञा भगवान और भगवान की आज्ञा पाकर चक्र महल के प्रवेश द्वार पर तैनात हो गया।गरूड़ ने हनुमान के पास पहुंचकर कहा कि हे वानरश्रेष्ठ! भगवान राम, माता सीता के साथ द्वारका में आपसे मिलने के लिए पधारे हैं। आपको बुला लाने की आज्ञा है। आप मेरे साथ चलिए। मैं आपको अपनी पीठ पर बैठाकर शीघ्र ही वहां ले जाऊंगा। हनुमान ने विनयपूर्वक गरूड़ से कहा, आप चलिए बंधु, मैं आता हूं। गरूड़ ने सोचा, पता नहीं यह बूढ़ा वानर कब पहुंचेगा। खैर मुझे क्या कभी भी पहुंचे, मेरा कार्य तो पूरा हो गया। मैं भगवान के पास चलता हूं। यह सोचकर गरूड़ शीघ्रता से द्वारका की ओर उड़ चले। लेकिन यह क्या? महल में पहुंचकर गरूड़ देखते हैं कि हनुमान तो उनसे पहले ही महल में प्रभु के सामने बैठे हैं। गरूड़ का सिर लज्जा से झुक गया। तभी श्रीराम के रूप में श्रीकृष्ण ने हनुमान से कहा कि पवनपुत्र तुम बिना आज्ञा के महल में कैसे प्रवेश कर गए? क्या तुम्हें किसी ने प्रवेश द्वार पर रोका नहीं? हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए सिर झुकाकर अपने मुंह से सुदर्शन चक्र को निकालकर प्रभु के सामने रख दिया। हनुमान ने कहा कि प्रभु आपसे मिलने से मुझे क्या कोई रोक सकता है? इस चक्र ने रोकने का तनिक प्रयास किया था इसलिए इसे मुंह में रख मैं आपसे मिलने आ गया। मुझे क्षमा करें। भगवान मंद-मंद मुस्कुराने लगे।अंत में हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए श्रीराम से प्रश्न किया, हे प्रभु! मैं आपको तो पहचानता हूं आप ही श्रीकृष्ण के रूप में मेरे राम हैं, लेकिन आज आपने मातासीता के स्थान पर किस दासी को इतना सम्मान दे दिया कि वह आपके साथ सिंहासन पर विराजमान है। अब रानी सत्यभामा का अहंकार भंग होने की बारी थी। उन्हें सुंदरता का अहंकार था, जो पलभर में चूर हो गया था। रानी सत्यभामा, सुदर्शन चक्र व गरूड़ तीनों का गर्व चूर-चूर हो गया था। वे भगवान की लीला समझ रहे थे। तीनों की आंखों से आंसू बहने लगे और वे भगवान के चरणों में झुक गए। भगवान ने अपने भक्तों के अंहकार को अपने भक्त हनुमान द्वारा ही दूर किया। अद्भुत लीला है प्रभु की〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🌹🌹🙏जय श्री राम🙏🌹🌹

हनुमानजी ने तोड़ दिया था गरुड़, सुदर्शन और सत्यभामा का अभिमान 🥀🥀🥀🥀जय श्री हनुमानजी🥀🥀🥀🥀 By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️🔸 भगवान श्रीकृष्ण को विष्णु का अवतार माना जाता है। विष्णु ने ही राम के रूप में अवतार लिया और विष्णु ने ही श्रीकृष्ण के रूप में। श्रीकृष्ण की 8 पत्नियां थीं- रुक्मणि, जाम्बवंती, सत्यभामा, कालिंदी, मित्रबिंदा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा। इसमें से सत्यभामा को अपनी सुंदरता और महारानी होने का घमंड हो चला था तो दूसरी ओर सुदर्शन चक्र खुद को सबसे शक्तिशाली समझता था और विष्णु वाहन गरूड़ को भी अपने सबसे तेज उड़ान भरने का घमंड था। एक दिन श्रीकृष्ण अपनी द्वारिका में रानी सत्यभामा के साथ सिंहासन पर विराजमान थे और उनके निकट ही गरूड़ और सुदर्शन चक्र भी उनकी सेवा में विराजमान थे। बातों ही बातों में रानी सत्यभामा ने व्यंग्यपूर्ण लहजे में पूछा- हे प्रभु, आपने त्रेतायुग में राम के रूप में अवतार लिया था, सीता आपकी पत्नी थीं। क्या वे मुझसे भी ज्यादा सुंदर थीं?   भगवान सत्यभामा की बातों का जवाब देते उससे पहले ही गरूड़ ने कहा- भगवान क्या दुनिया में...

हनुमानजी के पांच सगे भाई भी थे, जानिए उनके नाम ?🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबहनुमानजी हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता होने की बात कही जाती है, दरअसल वह 33 करोड़ नहीं वरन् 33 कोटि देवी-देवता हैं। यानि कि उन्हीं देवी-देवताओं के विभिन्न रूप एवं अवतार हैं। अब स्वयं देव हों या उनके कोई मानव रूपी अवतार, सभी से जुड़े तथ्य एवं पौराणिक वर्णन काफी दिलचस्प हैं।रोचक जानकारी आज हम हनुमान जी के बारे में आपको कुछ रोचक जानकारी देंगे। बजरंगबली, पवन पुत्र, अंजनी पुत्र, राम भक्त, ऐसे ही कई नामों से पुकारा जाता है हनुमान जी को। यह बात शायद सभी जानते हैं लेकिन आगे बताए जा रहे कुछ तथ्य हर कोई नहीं जानता।भगवान शिव का अवतार सबसे पहली बात, हनुमान जी को भगवान शिव का ही अवतार माना जाता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार अंजना नाम की एक अप्सरा को एक ऋषि द्वारा यह श्राप दिया गया कि जब भी वह प्रेम बंधन में पड़ेगी, उसका चेहरा एक वानर की भांति हो जाएगा। लेकिन इस श्राप से मुक्त होने के लिए भगवान ब्रह्मा ने अंजना की मदद की।अंजनी पुत्र उनकी मदद से अंजना ने धरती पर स्त्री रूप में जन्म लिया, यहां उसे वानरों के राजा केसरी से प्रेम हुआ। विवाह पश्चात श्राप से मुक्ति के लिए अंजना ने भगवान शिव की तपस्या आरंभ कर दी। तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें वरदान मांगने को कहा। अंजना ने भगवान शिव को कहा कि साधु के श्राप से मुक्ति पाने के लिए उन्हें शिव के अवतार को जन्म देना है, इसलिए शिव बालक के रूप में उनकी कोख से जन्म लें।शिव आराधना ‘तथास्तु’ कहकर शिव अंतर्ध्यान हो गए, इस घटना के बाद एक दिन अंजना शिव की आराधना कर रही थीं और इसी दौरान किसी दूसरे कोने में महाराज दशरथ, अपनी तीन रानियों के साथ पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए यज्ञ कर रहे थे।अंजना के हाथ में गिरा प्रसाद अग्नि देव ने उन्हें दैवीय ‘पायस’ दिया जिसे तीनों रानियों को खिलाना था लेकिन इस दौरान एक चमत्कारिक घटना हुई, एक पक्षी उस पायस की कटोरी में थोड़ा सा पायस अपने पंजों में फंसाकर ले गया और तपस्या में लीन अंजना के हाथ में गिरा दिया।शिव का प्रसाद अंजना ने शिव का प्रसाद समझकर उसे ग्रहण कर लिया और कुछ ही समय बाद उन्होंने वानर मुख वाले एक बालक को जन्म दिया। बहुत कम लोग जानते हैं कि इस बालक का नाम मारूति था, जिसे बाद में ‘हनुमान’ के नाम से जाना गया।अन्य कथा हनुमान जी से जुड़ा एक और तथ्य काफी रोचक है। एक कथा के अनुसार एक बार हनुमान जी ने श्रीराम की याद में अपने पूरे शरीर पर सिंदूर भी लगाया था। यह इसलिए क्योंकि एक बार उन्होंने माता सीता को सिंदूर लगाते हुए देख लिया। जब उन्होंने सिंदूर लगाने का कारण पूछा तो सीता जी ने बताया कि यह उनका श्रीराम के प्रति प्रेम एवं सम्मान का प्रतीक है।लाल हनुमान बस यह जानने की देरी ही थी कि हनुमान जी ने अपने पूरे शरीर पर सिंदूर लगा लिया, यह दर्शाने के लिए कि वे भी श्रीराम से अति प्रेम करते हैं। इस घटना के बाद हनुमान का ‘लाल हनुमान’ रूप भी काफी प्रचलित हुआ।हनुमान शब्द का संस्कृत अर्थ हनुमान जी से जुड़े कुछ छोटे-छोटे तथ्य हैं, जो काफी कम लोग जानते हैं। जैसे कि उनका नाम, ‘हनुमान’ शब्द का यदि संस्कृत अर्थ निकाला जाए तो इसका मतलब होता है जिसका मुख या जबड़ा बिगड़ा हुआ हो।हनुमान और भीम अगली बात जो हम बताने जा रहे हैं उसे जान आप वाकई हैरत में पड़ने वाले हैं। महाभारत काल में पाण्डु पुत्र राजकुमार भीम अपने बल के लिए जाने जाते थे। कहते हैं वे हनुमान जी के ही भाई थे।ब्रह्मचारी हनुमान इसके अलावा जिन हनुमान जी को ब्रह्मचारी कहा जाता है, उनकी शादी भी हुई थी। उनके पुत्र का नाम मकरध्वज है। लेकिन इसके अलावा उनके पांच भाई भी थे, क्या आप जानते हैं?हनुमान जी के पांच सगे भाई जी हां... हनुमान जी के पांच सगे भाई थे और वो पांचों ही विवाहित थे। यह कोई कहानी या मात्र मनोरंजन का साधन बनाने के लिए हवा में बताई गई बात नहीं है, बल्कि सच्चाई है। हनुमान जी के पांच सगे भाई थे, इस बात का उल्लेख 'ब्रह्मांडपुराण' में मिलता है।ब्रह्मांडपुराण के अनुसार इस पुराण में भगवान हनुमान के पिता केसरी एवं उनके वंश का वर्णन शामिल है। बड़ी बात यह है कि पांचों भाइयों में बजरंगबली सबसे बड़े थे। यानी हनुमानजी को शामिल करने पर वानर राज केसरी के 6 पुत्र थे।सबसे बड़े थे बजरंगबली बजरंगबली के बाद क्रमशः मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान, धृतिमान थे। इन सभी के संतान भी थीं, जिससे इनका वंश वर्षों तक चला। हनुमानजी के बारे जानकारी वैसे तो रामायण, श्रीरामचरितमानस, महाभारत और भी कई हिंदू धर्म ग्रंथों में मिलती है। बाल वनिता महिला आश्रमलेकिन उनके बारे में कुछ ऐसी भी बातें हैं जो बहुत कम धर्म ग्रंथों में उपलब्ध है। 'ब्रह्मांडपुराण' उन्हीं में से एक है। पिता केसरी का वंशज इस महान ग्रंथ में हनुमान जी के जीवन एवं उनसे जुड़ी कई बातें हैं। इसी ग्रंथ में उल्लेख है कि बजरंगबली के पिता केसरी ने अंजना से विवाह किया था🌹🙏🙏जय श्री राम🙏🙏 🌹

हनुमानजी के पांच सगे भाई भी थे, जानिए उनके नाम ? 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩 By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब हनुमानजी हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता होने की बात कही जाती है, दरअसल वह 33 करोड़ नहीं वरन् 33 कोटि देवी-देवता हैं। यानि कि उन्हीं देवी-देवताओं के विभिन्न रूप एवं अवतार हैं। अब स्वयं देव हों या उनके कोई मानव रूपी अवतार, सभी से जुड़े तथ्य एवं पौराणिक वर्णन काफी दिलचस्प हैं। रोचक जानकारी आज हम हनुमान जी के बारे में आपको कुछ रोचक जानकारी देंगे। बजरंगबली, पवन पुत्र, अंजनी पुत्र, राम भक्त, ऐसे ही कई नामों से पुकारा जाता है हनुमान जी को। यह बात शायद सभी जानते हैं लेकिन आगे बताए जा रहे कुछ तथ्य हर कोई नहीं जानता। भगवान शिव का अवतार सबसे पहली बात, हनुमान जी को भगवान शिव का ही अवतार माना जाता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार अंजना नाम की एक अप्सरा को एक ऋषि द्वारा यह श्राप दिया गया कि जब भी वह प्रेम बंधन में पड़ेगी, उसका चेहरा एक वानर की भांति हो जाएगा। लेकिन इस श्राप से मुक्त होने के लिए भगवान ब्रह्मा ने अंजना की मदद की। अंजनी पुत्र उनकी मदद से अंजना ने धरती पर स्त्री रूप में जन्म लिय...

🙏🌹 वो साक्षात श्री राम ही थे।🌹🙏 By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🍀🥀🌷 एक नगर में रामदासजी नामक बनिया थे । वे व्यापार करने के साथ-साथ भगवान की भक्ति-साधना भी करते थे और नित्य संतों की सेवा भी किया करते थे । 🌷भगवान ने अपने भक्तों (संतों) की पूजा को अपनी पूजा से श्रेष्ठ माना है क्योंकि संत लोग अपने पवित्र संग से असंतों को भी अपने जैसा संत बना लेते हैं । भगवान की इसी बात को मानकर भक्तों ने संतों की सेवा को भगवान की सेवा से बढ़कर माना है—‘प्रथम भक्ति संतन कर संगा ।’🌷रामदासजी सारा दिन नमक-मिर्च, गुड़ आदि की गठरी अपनी पीठ पर बांध कर गांव में फेरी लगाकर सामान बेचते थे जिससे उन्हें कुछ पैसे और अनाज मिल जाता था । 🌷एक दिन फेरी में कुछ सामान बेचने के बाद गठरी सिर पर रखकर घर की ओर चले । गठरी का वजन अधिक था पर वह उसे जैसे-तैसे ढो रहे थे । भगवान श्रीराम एक किसान का रूप धारण कर आये और बोले—‘भगतजी ! आपका दु:ख मुझसे देखा नहीं जा रहा है । मुझे भार वहन करने का अभ्यास है, मुझे भी बूंदी जाना है, मैं आपकी गठरी घर पहुंचा दूंगा ।’🌷ऐसा कह कर भगवान ने अपने भक्त के सिर का भार अपने ऊपर ले लिया और तेजी से आगे बढ़कर आंखों से ओझल हो गये । 🌷गीता (९।१४) में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है—‘संत लोग धैर्य धारण करके प्रयत्न से नित्य कीर्तन और नमन करते हैं, भक्तिभाव से नित्य उपासना करते हैं । ऐसे प्रेमी संत मेरे और मैं उनका हूँ; इस लोक में मैं उनके कार्यों में सदा सहयोग करता हूँ ।’🌷रामदासजी सोचने लगे—‘मैं इसे पहचानता नहीं हूँ और यह भी शायद मेरा घर न जानता होगा । पर जाने दो, राम करे सो होय ।’ 🌷यह कहकर वह रामधुन गाते हुए घर की चल दिए । रास्ते में वे मन-ही-मन सोचने लगे—आज थका हुआ हूँ, यदि घर पहुंचने पर गर्म जल मिल जाए तो झट से स्नान कर सेवा-पूजा कर लूं और आज कढ़ी-फुलका का भोग लगे तो अच्छा है ।🌷उधर किसान बने भगवान श्रीराम ने रामदासजी के घर जाकर गठरी एक कोने में रख दी और जोर से पुकार कर कहा—‘भगतजी आ रहे हैं, उन्होंने कहा है कि नहाने के लिए पानी गर्म कर देना और भोग के लिए कढ़ी-फुलका बना देना ।’🌷कुछ देर बाद रामदासजी घर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि सामान की गठरी कोने में रखी है । उनकी पत्नी ने कहा—‘पानी गर्म कर दिया है, झट से स्नान कर लो । भोग के लिए गर्म-गर्म कढ़ी और फुलके भी तैयार हैं ।’🌷रामदासजी ने आश्चर्यचकित होकर पूछा—‘तुमने मेरे मन की बात कैसे जान ली ।’पत्नी बोली—‘मुझे क्या पता तुम्हारे मन की बात ? उस गठरी लाने वाले ने कहा था ।’🌷रामदासजी समझ गए कि आज रामजी ने भक्त-वत्सलतावश बड़ा कष्ट सहा । उनकी आंखों से प्रेमाश्रु झरने लगे और वे अपने इष्ट के ध्यान में बैठ गये । 🌷ध्यान में प्रभु श्रीराम ने प्रकट होकर प्रसन्न होते हुए कहा—‘तुम नित्य सन्त-सेवा के लिए इतना परिश्रम करते हो, मैंने तुम्हारी थोड़ी-सी सहायता कर दी तो क्या हुआ ?’गीता (८।१४) में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है—🌷अनन्यचेता: सततं यो मां स्मरति नित्यश: । तस्याहं सुलभ: पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिन: ।।🌷अर्थात्—‘मेरा ही ध्यान मन में रखकर प्रतिदिन जो मुझे भजता है, उस योगी संत को सहज में मेरा दर्शन हो जाता है ।’🌷रामदासजी ने अपनी पत्नी से पूछा—‘क्या तूने उस गठरी लाने वाले को देखा था?’पत्नी बोली—‘मैं तो अंदर थी, पर उस व्यक्ति के शब्द बहुत ही मधुर थे।’रामदासजी ने पत्नी को बताया कि वे साक्षात् श्रीराम ही थे । तभी उन्होंने मेरे मन की बात जान ली।दोनों पति-पत्नी भगवान की भक्तवत्सलता से भाव-विह्वल होकर रामधुन गाने में लीन हो गये। 🌹🌹🙏जय श्री राम 🙏🌹🌹

🙏🌹 वो साक्षात श्री राम ही थे।🌹🙏        By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब               🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🍀🥀 🌷 एक नगर में रामदासजी नामक बनिया थे । वे व्यापार करने के साथ-साथ भगवान की भक्ति-साधना भी करते थे और नित्य संतों की सेवा भी किया करते थे ।  🌷भगवान ने अपने भक्तों (संतों) की पूजा को अपनी पूजा से श्रेष्ठ माना है क्योंकि संत लोग अपने पवित्र संग से असंतों को भी अपने जैसा संत बना लेते हैं । भगवान की इसी बात को मानकर भक्तों ने संतों की सेवा को भगवान की सेवा से बढ़कर माना है—‘प्रथम भक्ति संतन कर संगा ।’ 🌷रामदासजी सारा दिन नमक-मिर्च, गुड़ आदि की गठरी अपनी पीठ पर बांध कर गांव में फेरी लगाकर सामान बेचते थे जिससे उन्हें कुछ पैसे और अनाज मिल जाता था ।   🌷एक दिन फेरी में कुछ सामान बेचने के बाद गठरी सिर पर रखकर घर की ओर चले । गठरी का वजन अधिक था पर वह उसे जैसे-तैसे ढो रहे थे । भगवान श्रीराम एक किसान का रूप धारण कर आये और बोले—‘भगतजी ! आपका दु:ख मुझसे देखा नहीं जा रहा है । मुझे भार वहन करने का अभ्यास है, मुझे भी ब...

|| श्री हरि: ||--- :: x :: ---🥀🥀🙏सत्संग की आवश्यकता 🙏🥀🥀 By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब अपने अन्त:करण में कोई गड़बड़ी आ जाय तो भगवान् को पुकारो, हे नाथ ! हे नाथ !! पुकारो | यह एक दवाई है असली भगवान् को याद करो, खूब मस्त रहो | अपने कल्याण के लिये, पति के कल्याण के लिये, माता-पिता के कल्याण के लिये भगवान् के भजन में लग जाओ | पुरुष यदि श्रेष्ठ, उतम होता है तो वह अपने ही कुल का उध्दार करता है; परन्तु स्त्री श्रेष्ठ होती है तो वह दोनों कुलों का उध्दार कर देती है – एवा उतम गुण थी उभय सुकुल उजवालिये हे | सखियाँ निज-निज निति धर्म सदा सम्भालिये हे ||महाराज जनक चित्रकूट गये | वहाँ सीताजी सादे वेश में थीं | कितने प्रेम से पली थी सीताजी ! माता-पिता का उन पर बड़ा स्नेह था | जनकपुरी के कई राजकीय आदमी जनक जी के साथ में आये थे | उन्होंने सीताजी को साधारण वेश में देखा तो रो पड़े कि हमारे महाराज की पुत्री जंगल में रहकर दुःख पा रही है | रहने को जगह नहीं, खाने को अन्न नहीं, पहनने को पूरा बढ़िया कपड़ा नहीं ! परन्तु महाराज जनक बड़े राजी हुए और बोले कि बेटी ! तूने दोनों कुलों को पवित्र कर दिया – ‘पुत्रि पबित्र किए कुल दोऊ’ (मानस. २/२८७/१) | स्त्रियाँ श्रेष्ठ होती हैं तो दोनों कुलों का उध्दार करती हैं और खराब होती हैं तो दोनों कुलों का नाश करती हैं | इसलिये बहनों ! धर्म की, कुल की मर्यादा में चलो | बालकों पर, कुटुम्बियों पर आपके आचरणों का असर पड़ता है | समुद्र के बीच में यह पृथ्वी किस बल पर धारण की हुई है ? – गोभिर्विप्रैश्च वेदैश्च सतिभि: सत्यवादिभि: | अलुब्धैर्दानशीलैश्च सप्तभिर्धार्यते मही || (स्कन्दपुराण, २/७१)‘गायें, ब्राह्मण, वेद, सती स्त्री, सत्यवादी, लोभरहित और दानशील सन्त-महापुरुष – इन सातों के द्वारा यह पृथ्वी धारण की जाती है अर्थात इन पर पृथ्वी टिकी हुई है |’ अत सती स्त्रियों से पृथ्वी की, दुनिया की रक्षा होती है – ‘एक सती और जगत सारा, एक चन्द्रमा नौ लख तारा |’ इतना बल आपमें है | बाल वनिता महिला आश्रम🚩🚩🙏🙏🙏जय श्री राम 🙏🙏🙏🚩🚩

|| श्री हरि: || --- :: x :: --- 🥀🥀🙏सत्संग की आवश्यकता 🙏🥀🥀     By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब                अपने अन्त:करण में कोई गड़बड़ी आ जाय तो भगवान् को पुकारो, हे नाथ ! हे नाथ !! पुकारो | यह एक दवाई है असली भगवान् को याद करो, खूब मस्त रहो | अपने कल्याण के लिये, पति के कल्याण के लिये, माता-पिता के कल्याण के लिये भगवान् के भजन में लग जाओ | पुरुष यदि श्रेष्ठ, उतम होता है तो वह अपने ही कुल का उध्दार करता है; परन्तु स्त्री श्रेष्ठ होती है तो वह दोनों कुलों का उध्दार कर देती है –        एवा उतम गुण थी उभय सुकुल उजवालिये हे |        सखियाँ निज-निज निति धर्म सदा सम्भालिये हे || महाराज जनक चित्रकूट गये | वहाँ सीताजी सादे वेश में थीं | कितने प्रेम से पली थी सीताजी ! माता-पिता का उन पर बड़ा स्नेह था | जनकपुरी के कई राजकीय आदमी जनक जी के साथ में आये थे | उन्होंने सीताजी को साधारण वेश में देखा तो रो पड़े कि हमारे महाराज की पुत्री जंगल में रहकर दुःख पा रही है | रहने को जगह नहीं, खाने को अन्न नहीं, ...

🌹🌹🌹🌹भाग्य का लेख🌹🌹🌹🌹By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब एक आदमी ने नारदमुनि से पूछा मेरे भाग्य में कितना धन है...:नारदमुनि ने कहा - भगवान विष्णु से पूछकर कल बताऊंगा...:नारदमुनि ने कहा- 1 रुपया रोज तुम्हारे भाग्य में है...:आदमी बहुत खुश रहने लगा...उसकी जरूरते 1 रूपये में पूरी हो जाती थी...:एक दिन उसके मित्र ने कहा में तुम्हारे सादगी जीवन और खुश देखकर बहुत प्रभावित हुआ हूं और अपनी बहन की शादी तुमसे करना चाहता हूँ...:आदमी ने कहा मेरी कमाई 1 रुपया रोज की है इसको ध्यान में रखना...इसी में से ही गुजर बसर करना पड़ेगा तुम्हारी बहन को...:मित्र ने कहा कोई बात नहीं मुझे रिश्ता मंजूर है...:अगले दिन से उस आदमी की कमाई 11 रुपया हो गई...:उसने नारदमुनि को बुलाया की हे मुनिवर मेरे भाग्य में 1 रूपया लिखा है फिर 11 रुपये क्यो मिल रहे है...??:नारदमुनि ने कहा - तुम्हारा किसी से रिश्ता या सगाई हुई है क्या...??:हाँ हुई है...:तो यह तुमको 10 रुपये उसके भाग्य के मिल रहे है...इसको जोड़ना शुरू करो तुम्हारे विवाह में काम आएंगे...:एक दिन उसकी पत्नी गर्भवती हुई और उसकी कमाई 31 रूपये होने लगी...:फिर उसने नारदमुनि को बुलाया और कहा है मुनिवर मेरी और मेरी पत्नी के भाग्य के 11 रूपये मिल रहे थे लेकिन अभी 31 रूपये क्यों मिल रहे है...क्या मै कोई अपराध कर रहा हूँ...??:मुनिवर ने कहा- यह तेरे बच्चे के भाग्य के 20 रुपये मिल रहे है...:हर मनुष्य को उसका प्रारब्ध (भाग्य) मिलता है...किसके भाग्य से घर में धन दौलत आती है हमको नहीं पता...:लेकिन मनुष्य अहंकार करता है कि मैने बनाया,,,मैंने कमाया,,,मेरा है,,,मै कमा रहा हूँ,,, मेरी वजह से हो रहा है...बाल वनिता महिला आश्रम:हे प्राणी तुझे नहीं पता तू किसके भाग्य का खा कमा रहा है...।।👌👌👌👌👌🙏🙏जय श्री राम 🌹🌹

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