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हनुमानजी के पांच सगे भाई भी थे, जानिए उनके नाम ?🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबहनुमानजी हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता होने की बात कही जाती है, दरअसल वह 33 करोड़ नहीं वरन् 33 कोटि देवी-देवता हैं। यानि कि उन्हीं देवी-देवताओं के विभिन्न रूप एवं अवतार हैं। अब स्वयं देव हों या उनके कोई मानव रूपी अवतार, सभी से जुड़े तथ्य एवं पौराणिक वर्णन काफी दिलचस्प हैं।रोचक जानकारी आज हम हनुमान जी के बारे में आपको कुछ रोचक जानकारी देंगे। बजरंगबली, पवन पुत्र, अंजनी पुत्र, राम भक्त, ऐसे ही कई नामों से पुकारा जाता है हनुमान जी को। यह बात शायद सभी जानते हैं लेकिन आगे बताए जा रहे कुछ तथ्य हर कोई नहीं जानता।भगवान शिव का अवतार सबसे पहली बात, हनुमान जी को भगवान शिव का ही अवतार माना जाता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार अंजना नाम की एक अप्सरा को एक ऋषि द्वारा यह श्राप दिया गया कि जब भी वह प्रेम बंधन में पड़ेगी, उसका चेहरा एक वानर की भांति हो जाएगा। लेकिन इस श्राप से मुक्त होने के लिए भगवान ब्रह्मा ने अंजना की मदद की।अंजनी पुत्र उनकी मदद से अंजना ने धरती पर स्त्री रूप में जन्म लिया, यहां उसे वानरों के राजा केसरी से प्रेम हुआ। विवाह पश्चात श्राप से मुक्ति के लिए अंजना ने भगवान शिव की तपस्या आरंभ कर दी। तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें वरदान मांगने को कहा। अंजना ने भगवान शिव को कहा कि साधु के श्राप से मुक्ति पाने के लिए उन्हें शिव के अवतार को जन्म देना है, इसलिए शिव बालक के रूप में उनकी कोख से जन्म लें।शिव आराधना ‘तथास्तु’ कहकर शिव अंतर्ध्यान हो गए, इस घटना के बाद एक दिन अंजना शिव की आराधना कर रही थीं और इसी दौरान किसी दूसरे कोने में महाराज दशरथ, अपनी तीन रानियों के साथ पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए यज्ञ कर रहे थे।अंजना के हाथ में गिरा प्रसाद अग्नि देव ने उन्हें दैवीय ‘पायस’ दिया जिसे तीनों रानियों को खिलाना था लेकिन इस दौरान एक चमत्कारिक घटना हुई, एक पक्षी उस पायस की कटोरी में थोड़ा सा पायस अपने पंजों में फंसाकर ले गया और तपस्या में लीन अंजना के हाथ में गिरा दिया।शिव का प्रसाद अंजना ने शिव का प्रसाद समझकर उसे ग्रहण कर लिया और कुछ ही समय बाद उन्होंने वानर मुख वाले एक बालक को जन्म दिया। बहुत कम लोग जानते हैं कि इस बालक का नाम मारूति था, जिसे बाद में ‘हनुमान’ के नाम से जाना गया।अन्य कथा हनुमान जी से जुड़ा एक और तथ्य काफी रोचक है। एक कथा के अनुसार एक बार हनुमान जी ने श्रीराम की याद में अपने पूरे शरीर पर सिंदूर भी लगाया था। यह इसलिए क्योंकि एक बार उन्होंने माता सीता को सिंदूर लगाते हुए देख लिया। जब उन्होंने सिंदूर लगाने का कारण पूछा तो सीता जी ने बताया कि यह उनका श्रीराम के प्रति प्रेम एवं सम्मान का प्रतीक है।लाल हनुमान बस यह जानने की देरी ही थी कि हनुमान जी ने अपने पूरे शरीर पर सिंदूर लगा लिया, यह दर्शाने के लिए कि वे भी श्रीराम से अति प्रेम करते हैं। इस घटना के बाद हनुमान का ‘लाल हनुमान’ रूप भी काफी प्रचलित हुआ।हनुमान शब्द का संस्कृत अर्थ हनुमान जी से जुड़े कुछ छोटे-छोटे तथ्य हैं, जो काफी कम लोग जानते हैं। जैसे कि उनका नाम, ‘हनुमान’ शब्द का यदि संस्कृत अर्थ निकाला जाए तो इसका मतलब होता है जिसका मुख या जबड़ा बिगड़ा हुआ हो।हनुमान और भीम अगली बात जो हम बताने जा रहे हैं उसे जान आप वाकई हैरत में पड़ने वाले हैं। महाभारत काल में पाण्डु पुत्र राजकुमार भीम अपने बल के लिए जाने जाते थे। कहते हैं वे हनुमान जी के ही भाई थे।ब्रह्मचारी हनुमान इसके अलावा जिन हनुमान जी को ब्रह्मचारी कहा जाता है, उनकी शादी भी हुई थी। उनके पुत्र का नाम मकरध्वज है। लेकिन इसके अलावा उनके पांच भाई भी थे, क्या आप जानते हैं?हनुमान जी के पांच सगे भाई जी हां... हनुमान जी के पांच सगे भाई थे और वो पांचों ही विवाहित थे। यह कोई कहानी या मात्र मनोरंजन का साधन बनाने के लिए हवा में बताई गई बात नहीं है, बल्कि सच्चाई है। हनुमान जी के पांच सगे भाई थे, इस बात का उल्लेख 'ब्रह्मांडपुराण' में मिलता है।ब्रह्मांडपुराण के अनुसार इस पुराण में भगवान हनुमान के पिता केसरी एवं उनके वंश का वर्णन शामिल है। बड़ी बात यह है कि पांचों भाइयों में बजरंगबली सबसे बड़े थे। यानी हनुमानजी को शामिल करने पर वानर राज केसरी के 6 पुत्र थे।सबसे बड़े थे बजरंगबली बजरंगबली के बाद क्रमशः मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान, धृतिमान थे। इन सभी के संतान भी थीं, जिससे इनका वंश वर्षों तक चला। हनुमानजी के बारे जानकारी वैसे तो रामायण, श्रीरामचरितमानस, महाभारत और भी कई हिंदू धर्म ग्रंथों में मिलती है। बाल वनिता महिला आश्रमलेकिन उनके बारे में कुछ ऐसी भी बातें हैं जो बहुत कम धर्म ग्रंथों में उपलब्ध है। 'ब्रह्मांडपुराण' उन्हीं में से एक है। पिता केसरी का वंशज इस महान ग्रंथ में हनुमान जी के जीवन एवं उनसे जुड़ी कई बातें हैं। इसी ग्रंथ में उल्लेख है कि बजरंगबली के पिता केसरी ने अंजना से विवाह किया था🌹🙏🙏जय श्री राम🙏🙏 🌹

हनुमानजी के पांच सगे भाई भी थे, जानिए उनके नाम ?
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हनुमानजी हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता होने की बात कही जाती है, दरअसल वह 33 करोड़ नहीं वरन् 33 कोटि देवी-देवता हैं। यानि कि उन्हीं देवी-देवताओं के विभिन्न रूप एवं अवतार हैं। अब स्वयं देव हों या उनके कोई मानव रूपी अवतार, सभी से जुड़े तथ्य एवं पौराणिक वर्णन काफी दिलचस्प हैं।

रोचक जानकारी आज हम हनुमान जी के बारे में आपको कुछ रोचक जानकारी देंगे। बजरंगबली, पवन पुत्र, अंजनी पुत्र, राम भक्त, ऐसे ही कई नामों से पुकारा जाता है हनुमान जी को। यह बात शायद सभी जानते हैं लेकिन आगे बताए जा रहे कुछ तथ्य हर कोई नहीं जानता।

भगवान शिव का अवतार सबसे पहली बात, हनुमान जी को भगवान शिव का ही अवतार माना जाता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार अंजना नाम की एक अप्सरा को एक ऋषि द्वारा यह श्राप दिया गया कि जब भी वह प्रेम बंधन में पड़ेगी, उसका चेहरा एक वानर की भांति हो जाएगा। लेकिन इस श्राप से मुक्त होने के लिए भगवान ब्रह्मा ने अंजना की मदद की।

अंजनी पुत्र उनकी मदद से अंजना ने धरती पर स्त्री रूप में जन्म लिया, यहां उसे वानरों के राजा केसरी से प्रेम हुआ। विवाह पश्चात श्राप से मुक्ति के लिए अंजना ने भगवान शिव की तपस्या आरंभ कर दी। तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें वरदान मांगने को कहा। अंजना ने भगवान शिव को कहा कि साधु के श्राप से मुक्ति पाने के लिए उन्हें शिव के अवतार को जन्म देना है, इसलिए शिव बालक के रूप में उनकी कोख से जन्म लें।

शिव आराधना ‘तथास्तु’ कहकर शिव अंतर्ध्यान हो गए, इस घटना के बाद एक दिन अंजना शिव की आराधना कर रही थीं और इसी दौरान किसी दूसरे कोने में महाराज दशरथ, अपनी तीन रानियों के साथ पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए यज्ञ कर रहे थे।

अंजना के हाथ में गिरा प्रसाद अग्नि देव ने उन्हें दैवीय ‘पायस’ दिया जिसे तीनों रानियों को खिलाना था लेकिन इस दौरान एक चमत्कारिक घटना हुई, एक पक्षी उस पायस की कटोरी में थोड़ा सा पायस अपने पंजों में फंसाकर ले गया और तपस्या में लीन अंजना के हाथ में गिरा दिया।

शिव का प्रसाद अंजना ने शिव का प्रसाद समझकर उसे ग्रहण कर लिया और कुछ ही समय बाद उन्होंने वानर मुख वाले एक बालक को जन्म दिया। बहुत कम लोग जानते हैं कि इस बालक का नाम मारूति था, जिसे बाद में ‘हनुमान’ के नाम से जाना गया।

अन्य कथा हनुमान जी से जुड़ा एक और तथ्य काफी रोचक है। एक कथा के अनुसार एक बार हनुमान जी ने श्रीराम की याद में अपने पूरे शरीर पर सिंदूर भी लगाया था। यह इसलिए क्योंकि एक बार उन्होंने माता सीता को सिंदूर लगाते हुए देख लिया। जब उन्होंने सिंदूर लगाने का कारण पूछा तो सीता जी ने बताया कि यह उनका श्रीराम के प्रति प्रेम एवं सम्मान का प्रतीक है।

लाल हनुमान बस यह जानने की देरी ही थी कि हनुमान जी ने अपने पूरे शरीर पर सिंदूर लगा लिया, यह दर्शाने के लिए कि वे भी श्रीराम से अति प्रेम करते हैं। इस घटना के बाद हनुमान का ‘लाल हनुमान’ रूप भी काफी प्रचलित हुआ।

हनुमान शब्द का संस्कृत अर्थ हनुमान जी से जुड़े कुछ छोटे-छोटे तथ्य हैं, जो काफी कम लोग जानते हैं। जैसे कि उनका नाम, ‘हनुमान’ शब्द का यदि संस्कृत अर्थ निकाला जाए तो इसका मतलब होता है जिसका मुख या जबड़ा बिगड़ा हुआ हो।

हनुमान और भीम अगली बात जो हम बताने जा रहे हैं उसे जान आप वाकई हैरत में पड़ने वाले हैं। महाभारत काल में पाण्डु पुत्र राजकुमार भीम अपने बल के लिए जाने जाते थे। कहते हैं वे हनुमान जी के ही भाई थे।

ब्रह्मचारी हनुमान इसके अलावा जिन हनुमान जी को ब्रह्मचारी कहा जाता है, उनकी शादी भी हुई थी। उनके पुत्र का नाम मकरध्वज है। लेकिन इसके अलावा उनके पांच भाई भी थे, क्या आप जानते हैं?

हनुमान जी के पांच सगे भाई जी हां... हनुमान जी के पांच सगे भाई थे और वो पांचों ही विवाहित थे। यह कोई कहानी या मात्र मनोरंजन का साधन बनाने के लिए हवा में बताई गई बात नहीं है, बल्कि सच्चाई है। हनुमान जी के पांच सगे भाई थे, इस बात का उल्लेख 'ब्रह्मांडपुराण' में मिलता है।

ब्रह्मांडपुराण के अनुसार इस पुराण में भगवान हनुमान के पिता केसरी एवं उनके वंश का वर्णन शामिल है। बड़ी बात यह है कि पांचों भाइयों में बजरंगबली सबसे बड़े थे। यानी हनुमानजी को शामिल करने पर वानर राज केसरी के 6 पुत्र थे।

सबसे बड़े थे बजरंगबली बजरंगबली के बाद क्रमशः मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान, धृतिमान थे। इन सभी के संतान भी थीं, जिससे इनका वंश वर्षों तक चला। हनुमानजी के बारे जानकारी वैसे तो रामायण, श्रीरामचरितमानस, महाभारत और भी कई हिंदू धर्म ग्रंथों में मिलती है। 

लेकिन उनके बारे में कुछ ऐसी भी बातें हैं जो बहुत कम धर्म ग्रंथों में उपलब्ध है। 'ब्रह्मांडपुराण' उन्हीं में से एक है। पिता केसरी का वंशज इस महान ग्रंथ में हनुमान जी के जीवन एवं उनसे जुड़ी कई बातें हैं। इसी ग्रंथ में उल्लेख है कि बजरंगबली के पिता केसरी ने अंजना से विवाह किया था
🌹🙏🙏जय श्री राम🙏🙏 🌹

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🙏🌹 वो साक्षात श्री राम ही थे।🌹🙏 By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🍀🥀🌷 एक नगर में रामदासजी नामक बनिया थे । वे व्यापार करने के साथ-साथ भगवान की भक्ति-साधना भी करते थे और नित्य संतों की सेवा भी किया करते थे । 🌷भगवान ने अपने भक्तों (संतों) की पूजा को अपनी पूजा से श्रेष्ठ माना है क्योंकि संत लोग अपने पवित्र संग से असंतों को भी अपने जैसा संत बना लेते हैं । भगवान की इसी बात को मानकर भक्तों ने संतों की सेवा को भगवान की सेवा से बढ़कर माना है—‘प्रथम भक्ति संतन कर संगा ।’🌷रामदासजी सारा दिन नमक-मिर्च, गुड़ आदि की गठरी अपनी पीठ पर बांध कर गांव में फेरी लगाकर सामान बेचते थे जिससे उन्हें कुछ पैसे और अनाज मिल जाता था । 🌷एक दिन फेरी में कुछ सामान बेचने के बाद गठरी सिर पर रखकर घर की ओर चले । गठरी का वजन अधिक था पर वह उसे जैसे-तैसे ढो रहे थे । भगवान श्रीराम एक किसान का रूप धारण कर आये और बोले—‘भगतजी ! आपका दु:ख मुझसे देखा नहीं जा रहा है । मुझे भार वहन करने का अभ्यास है, मुझे भी बूंदी जाना है, मैं आपकी गठरी घर पहुंचा दूंगा ।’🌷ऐसा कह कर भगवान ने अपने भक्त के सिर का भार अपने ऊपर ले लिया और तेजी से आगे बढ़कर आंखों से ओझल हो गये । 🌷गीता (९।१४) में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है—‘संत लोग धैर्य धारण करके प्रयत्न से नित्य कीर्तन और नमन करते हैं, भक्तिभाव से नित्य उपासना करते हैं । ऐसे प्रेमी संत मेरे और मैं उनका हूँ; इस लोक में मैं उनके कार्यों में सदा सहयोग करता हूँ ।’🌷रामदासजी सोचने लगे—‘मैं इसे पहचानता नहीं हूँ और यह भी शायद मेरा घर न जानता होगा । पर जाने दो, राम करे सो होय ।’ 🌷यह कहकर वह रामधुन गाते हुए घर की चल दिए । रास्ते में वे मन-ही-मन सोचने लगे—आज थका हुआ हूँ, यदि घर पहुंचने पर गर्म जल मिल जाए तो झट से स्नान कर सेवा-पूजा कर लूं और आज कढ़ी-फुलका का भोग लगे तो अच्छा है ।🌷उधर किसान बने भगवान श्रीराम ने रामदासजी के घर जाकर गठरी एक कोने में रख दी और जोर से पुकार कर कहा—‘भगतजी आ रहे हैं, उन्होंने कहा है कि नहाने के लिए पानी गर्म कर देना और भोग के लिए कढ़ी-फुलका बना देना ।’🌷कुछ देर बाद रामदासजी घर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि सामान की गठरी कोने में रखी है । उनकी पत्नी ने कहा—‘पानी गर्म कर दिया है, झट से स्नान कर लो । भोग के लिए गर्म-गर्म कढ़ी और फुलके भी तैयार हैं ।’🌷रामदासजी ने आश्चर्यचकित होकर पूछा—‘तुमने मेरे मन की बात कैसे जान ली ।’पत्नी बोली—‘मुझे क्या पता तुम्हारे मन की बात ? उस गठरी लाने वाले ने कहा था ।’🌷रामदासजी समझ गए कि आज रामजी ने भक्त-वत्सलतावश बड़ा कष्ट सहा । उनकी आंखों से प्रेमाश्रु झरने लगे और वे अपने इष्ट के ध्यान में बैठ गये । 🌷ध्यान में प्रभु श्रीराम ने प्रकट होकर प्रसन्न होते हुए कहा—‘तुम नित्य सन्त-सेवा के लिए इतना परिश्रम करते हो, मैंने तुम्हारी थोड़ी-सी सहायता कर दी तो क्या हुआ ?’गीता (८।१४) में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है—🌷अनन्यचेता: सततं यो मां स्मरति नित्यश: । तस्याहं सुलभ: पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिन: ।।🌷अर्थात्—‘मेरा ही ध्यान मन में रखकर प्रतिदिन जो मुझे भजता है, उस योगी संत को सहज में मेरा दर्शन हो जाता है ।’🌷रामदासजी ने अपनी पत्नी से पूछा—‘क्या तूने उस गठरी लाने वाले को देखा था?’पत्नी बोली—‘मैं तो अंदर थी, पर उस व्यक्ति के शब्द बहुत ही मधुर थे।’रामदासजी ने पत्नी को बताया कि वे साक्षात् श्रीराम ही थे । तभी उन्होंने मेरे मन की बात जान ली।दोनों पति-पत्नी भगवान की भक्तवत्सलता से भाव-विह्वल होकर रामधुन गाने में लीन हो गये। 🌹🌹🙏जय श्री राम 🙏🌹🌹

🙏🌹 वो साक्षात श्री राम ही थे।🌹🙏        By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब               🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🍀🥀 🌷 एक नगर में रामदासजी नामक बनिया थे । वे व्यापार करने के साथ-साथ भगवान की भक्ति-साधना भी करते थे और नित्य संतों की सेवा भी किया करते थे ।  🌷भगवान ने अपने भक्तों (संतों) की पूजा को अपनी पूजा से श्रेष्ठ माना है क्योंकि संत लोग अपने पवित्र संग से असंतों को भी अपने जैसा संत बना लेते हैं । भगवान की इसी बात को मानकर भक्तों ने संतों की सेवा को भगवान की सेवा से बढ़कर माना है—‘प्रथम भक्ति संतन कर संगा ।’ 🌷रामदासजी सारा दिन नमक-मिर्च, गुड़ आदि की गठरी अपनी पीठ पर बांध कर गांव में फेरी लगाकर सामान बेचते थे जिससे उन्हें कुछ पैसे और अनाज मिल जाता था ।   🌷एक दिन फेरी में कुछ सामान बेचने के बाद गठरी सिर पर रखकर घर की ओर चले । गठरी का वजन अधिक था पर वह उसे जैसे-तैसे ढो रहे थे । भगवान श्रीराम एक किसान का रूप धारण कर आये और बोले—‘भगतजी ! आपका दु:ख मुझसे देखा नहीं जा रहा है । मुझे भार वहन करने का अभ्यास है, मुझे भी ब...

हनुमानजी ने तोड़ दिया था गरुड़, सुदर्शन और सत्यभामा का अभिमान 🥀🥀🥀🥀जय श्री हनुमानजी🥀🥀🥀🥀By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️🔸भगवान श्रीकृष्ण को विष्णु का अवतार माना जाता है। विष्णु ने ही राम के रूप में अवतार लिया और विष्णु ने ही श्रीकृष्ण के रूप में। श्रीकृष्ण की 8 पत्नियां थीं- रुक्मणि, जाम्बवंती, सत्यभामा, कालिंदी, मित्रबिंदा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा। इसमें से सत्यभामा को अपनी सुंदरता और महारानी होने का घमंड हो चला था तो दूसरी ओर सुदर्शन चक्र खुद को सबसे शक्तिशाली समझता था और विष्णु वाहन गरूड़ को भी अपने सबसे तेज उड़ान भरने का घमंड था।एक दिन श्रीकृष्ण अपनी द्वारिका में रानी सत्यभामा के साथ सिंहासन पर विराजमान थे और उनके निकट ही गरूड़ और सुदर्शन चक्र भी उनकी सेवा में विराजमान थे। बातों ही बातों में रानी सत्यभामा ने व्यंग्यपूर्ण लहजे में पूछा- हे प्रभु, आपने त्रेतायुग में राम के रूप में अवतार लिया था, सीता आपकी पत्नी थीं। क्या वे मुझसे भी ज्यादा सुंदर थीं? भगवान सत्यभामा की बातों का जवाब देते उससे पहले ही गरूड़ ने कहा- भगवान क्या दुनिया में मुझसे भी ज्यादा तेज गति से कोई उड़ सकता है। तभी सुदर्शन से भी रहा नहीं गया और वह भी बोल उठा कि भगवान, मैंने बड़े-बड़े युद्धों में आपको विजयश्री दिलवाई है। क्या संसार में मुझसे भी शक्तिशाली कोई है? द्वारकाधीश समझ गए कि तीनों में अभिमान आ गया है। भगवान मंद-मंद मुस्कुराने लगे और सोचने लगे कि इनका अहंकार कैसे नष्ट किया जाए, तभी उनको एक युक्ति सूझी... भगवान मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे। वे जान रहे थे कि उनके इन तीनों भक्तों को अहंकार हो गया है और इनका अहंकार नष्ट होने का समय आ गया है। ऐसा सोचकर उन्होंने गरूड़ से कहा कि हे गरूड़! तुम हनुमान के पास जाओ और कहना कि भगवान राम, माता सीता के साथ उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। गरूड़ भगवान की आज्ञा लेकर हनुमान को लाने चले गए ।इधर श्रीकृष्ण ने सत्यभामा से कहा कि देवी, आप सीता के रूप में तैयार हो जाएं और स्वयं द्वारकाधीश ने राम का रूप धारण कर लिया। तब श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र को आज्ञा देते हुए कहा कि तुम महल के प्रवेश द्वार पर पहरा दो और ध्यान रहे कि मेरी आज्ञा के बिना महल में कोई भी प्रवेश न करने पाए। सुदर्शन चक्र ने कहा, जो आज्ञा भगवान और भगवान की आज्ञा पाकर चक्र महल के प्रवेश द्वार पर तैनात हो गया।गरूड़ ने हनुमान के पास पहुंचकर कहा कि हे वानरश्रेष्ठ! भगवान राम, माता सीता के साथ द्वारका में आपसे मिलने के लिए पधारे हैं। आपको बुला लाने की आज्ञा है। आप मेरे साथ चलिए। मैं आपको अपनी पीठ पर बैठाकर शीघ्र ही वहां ले जाऊंगा। हनुमान ने विनयपूर्वक गरूड़ से कहा, आप चलिए बंधु, मैं आता हूं। गरूड़ ने सोचा, पता नहीं यह बूढ़ा वानर कब पहुंचेगा। खैर मुझे क्या कभी भी पहुंचे, मेरा कार्य तो पूरा हो गया। मैं भगवान के पास चलता हूं। यह सोचकर गरूड़ शीघ्रता से द्वारका की ओर उड़ चले। लेकिन यह क्या? महल में पहुंचकर गरूड़ देखते हैं कि हनुमान तो उनसे पहले ही महल में प्रभु के सामने बैठे हैं। गरूड़ का सिर लज्जा से झुक गया। तभी श्रीराम के रूप में श्रीकृष्ण ने हनुमान से कहा कि पवनपुत्र तुम बिना आज्ञा के महल में कैसे प्रवेश कर गए? क्या तुम्हें किसी ने प्रवेश द्वार पर रोका नहीं? हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए सिर झुकाकर अपने मुंह से सुदर्शन चक्र को निकालकर प्रभु के सामने रख दिया। हनुमान ने कहा कि प्रभु आपसे मिलने से मुझे क्या कोई रोक सकता है? इस चक्र ने रोकने का तनिक प्रयास किया था इसलिए इसे मुंह में रख मैं आपसे मिलने आ गया। मुझे क्षमा करें। भगवान मंद-मंद मुस्कुराने लगे।अंत में हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए श्रीराम से प्रश्न किया, हे प्रभु! मैं आपको तो पहचानता हूं आप ही श्रीकृष्ण के रूप में मेरे राम हैं, लेकिन आज आपने मातासीता के स्थान पर किस दासी को इतना सम्मान दे दिया कि वह आपके साथ सिंहासन पर विराजमान है। अब रानी सत्यभामा का अहंकार भंग होने की बारी थी। उन्हें सुंदरता का अहंकार था, जो पलभर में चूर हो गया था। रानी सत्यभामा, सुदर्शन चक्र व गरूड़ तीनों का गर्व चूर-चूर हो गया था। वे भगवान की लीला समझ रहे थे। तीनों की आंखों से आंसू बहने लगे और वे भगवान के चरणों में झुक गए। भगवान ने अपने भक्तों के अंहकार को अपने भक्त हनुमान द्वारा ही दूर किया। अद्भुत लीला है प्रभु की〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🌹🌹🙏जय श्री राम🙏🌹🌹

हनुमानजी ने तोड़ दिया था गरुड़, सुदर्शन और सत्यभामा का अभिमान 🥀🥀🥀🥀जय श्री हनुमानजी🥀🥀🥀🥀 By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️🔸 भगवान श्रीकृष्ण को विष्णु का अवतार माना जाता है। विष्णु ने ही राम के रूप में अवतार लिया और विष्णु ने ही श्रीकृष्ण के रूप में। श्रीकृष्ण की 8 पत्नियां थीं- रुक्मणि, जाम्बवंती, सत्यभामा, कालिंदी, मित्रबिंदा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा। इसमें से सत्यभामा को अपनी सुंदरता और महारानी होने का घमंड हो चला था तो दूसरी ओर सुदर्शन चक्र खुद को सबसे शक्तिशाली समझता था और विष्णु वाहन गरूड़ को भी अपने सबसे तेज उड़ान भरने का घमंड था। एक दिन श्रीकृष्ण अपनी द्वारिका में रानी सत्यभामा के साथ सिंहासन पर विराजमान थे और उनके निकट ही गरूड़ और सुदर्शन चक्र भी उनकी सेवा में विराजमान थे। बातों ही बातों में रानी सत्यभामा ने व्यंग्यपूर्ण लहजे में पूछा- हे प्रभु, आपने त्रेतायुग में राम के रूप में अवतार लिया था, सीता आपकी पत्नी थीं। क्या वे मुझसे भी ज्यादा सुंदर थीं?   भगवान सत्यभामा की बातों का जवाब देते उससे पहले ही गरूड़ ने कहा- भगवान क्या दुनिया में...

भाई-बहनों, आज हम पांडवों की माता कुन्ती के जीवन का दर्शन करेंगे, By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबमहाभारत युद्ध के बाद जब भगवान् श्री कृष्णजी द्वारिका जा रहे थे, तब भगवान् ने सभी को इच्छित वरदान दियें, जब माता कुन्ती से वर मांगने के लिये कहाँ गया तो माँ कुन्ती ने क्या मांगा? कुन्ती बोली- मैं क्या मांगूं गोपाल? मांगते तो वो हैं जिनके पास कुछ होता नहीं, जिसको सर्वस्व पहले ही मिला हुआ हो, वो क्या मांगे? कन्हैया बोले, कुछ तो मांगो बुआ, मेरा देने का मन है, कुन्ती ने तुरंत अपनी साड़ी के पल्लू को आगे कर लिया और देना चाहते हो तो गोपाल एक ही वर दे दो।विपद: सन्तु न: शश्ववत्तत्र तत्र जगद्गुरो।भवतो दर्शनं यत्स्यादपुनभ॔वदर्शनम्।।मेरे जीवन में विपत्ति पर विपत्ति आती रहें, एक विपत्ति दूर न हो दूसरी विपत्ति आ जाये, दु:ख पर दु:ख मेरे जीवन में आता रहे, भगवान् बोले, क्या मांग रही हो बुआ? दु:ख भी कोई मांगने की चीज है? कुन्ती ने कहा गोपाल जिस दु:ख में तुम्हारी याद आती है ना, वो दु:ख ही सबसे बड़ा सुख होता है, मेरे गोविन्द आवेश में आ गये और बोले, बुआ अब ये दु:ख मैं तुम्हें नहीं दे सकता, जीवन में दु:ख के सिवाय तुमने और पाया ही क्या है? सज्जनों! आप माता कुन्ती के चरित्र पर एक नजर डालकर देखें, कुन्ती का जन्म हुआ मथुरा में शूरसेन के घर, जन्म लेने के बाद ही इनको कुंती भोज राजा ले गये, इनका वास्तविक नाम है प्रथा, कुंती भोज राजा ने अपना नाम दिया और कुन्ती नाम रख दिया, इनका जन्म कहीं हुआ, पालन दूसरे घर में हुआ, भाई-बहनों! जिस बालक का जन्म कहीं और पालन कहीं और हो, उसका बचपन सुख से व्यतीत कैसे हो सकता है? बचपन माता कुन्ती का बड़े कष्ट में व्यतीत हुआ, किशोरावस्था भें कुन्ती का विवाह हो गया, विवाह भी हुआ तो एक ऐसे पुरुष से जो जन्म से ही पीलिया के रोग से ग्रस्त हैं, माद्रि और कुन्ती दोनों उनकी पत्नी हैं, कुन्ती ने सोचा, कोई बात नहीं मेरे लिए तो पति परमेश्वर है, पति भी मिला तो ऐसा जो पीलिया का रोगी है और उस पति का कोई सुख नहीं, क्योंकि पति को ऐसा श्राप मिला हुआ कि जब भी सहवास की कामना लेकर पत्नी के पास जाओगे, तुम्हारी मृत्यु हो जायेगी।ये तो महात्मा दुर्वासा के कुछ मंत्र ऐसे दिये हुए थे जिससे कुन्ती जिस देवता का आव्हान करके बुलाती तो प्रकट हो जाते, उन्हीं मंत्रों के आश्रय से धर्मराज को आमंत्रित किया, धर्मराज की कृपा से युधिष्ठिरजी का प्रादुर्भाव हुआ, इन्द्र की कृपा से अर्जुन, पवनदेव की कृपा से भीमसेन, माद्रि जो उनकी सौत हैं, उसके लिये भी अश्विनी कुमारों को आमंत्रित किया, दो बेटे हुए नकुल और सहदेव, माता कुन्ती पाँच पांडवों में से बङे तीन की माता थीं, कुन्ती पंच-कन्याओं में से एक हैं जिन्हें चिर-कुमारी कहा जाता है।भाई-बहनों! महाराज पाण्डु को श्राप कैसे मिला यह भी समझने की कोशिश करेंगे, हुआ ऐसा कि एक बार राजा पाण्डु अपनी दोनों पत्नियों यानी माता कुन्ती तथा माद्री के साथ आखेट के लिये वन में गये, वहाँ उन्हें एक मृग का मैथुनरत जोड़ा दृष्टिगत हुआ, पाण्डु ने तत्काल अपने बाण से उस मृग को घायल कर दिया, मरते हुये मृग ने पाण्डु को शाप दिया कि तुम्हारे समान क्रूर पुरुष इस संसार में कोई भी नहीं होगा, तूने मुझे मैथुन के समय बाण मारा है अतः जब कभी भी तू मैथुनरत होगा तेरी मृत्यु हो जायेगी।इसी दौरान राजा पाण्डु ने अमावस्या के दिन ऋषि-मुनियों को ब्रह्मा जी के दर्शनों के लिये जाते हुये देखा, उन्होंने उन ऋषि-मुनियों से स्वयं को साथ ले जाने का आग्रह किया, उनके इस आग्रह पर ऋषि-मुनियों ने कहा, "राजन्! कोई भी निःसन्तान पुरुष ब्रह्मलोक जाने का अधिकारी नहीं हो सकता अत: हम आपको अपने साथ ले जाने में असमर्थ हैं, ऋषि-मुनियों की बात सुन कर पाण्डु अपनी पत्नी से बोले, हे कुन्ती! मेरा जन्म लेना ही वृथ हो रहा है, क्योंकि? सन्तानहीन व्यक्ति पितृ-ऋण, ऋषि-ऋण, देव-ऋण तथा मनुष्य-ऋण से मुक्ति नहीं पा सकता। क्या तुम पुत्र प्राप्ति के लिये मेरी सहायता कर सकती हो? कुन्ती बोली- हे आर्यपुत्र! दुर्वासा ऋषि ने मुझे ऐसा मन्त्र प्रदान किया है जिससे मैं किसी भी देवता का आह्वान करके मनोवांछित संतान प्राप्त कर सकती हूँ, आप आज्ञा करें मैं किस देवता को बुलाऊँ, इस पर पाण्डु ने धर्म को आमन्त्रित करने का आदेश दिया, धर्म ने कुन्ती को पुत्र प्रदान किया जिसका नाम युधिष्ठिर रखा गया, महाराज पाण्डु ने कुन्ती को पुनः दो बार वायुदेव तथा इन्द्रदेव को आमन्त्रित करने की आज्ञा दी। वायुदेव से भीम तथा इन्द्र से अर्जुन की उत्पत्ति हुई, तत्पश्चात् महाराज पाण्डु की आज्ञा से कुन्ती ने माद्री को उस मन्त्र की दीक्षा दी, माद्री ने अश्वनीकुमारों को आमन्त्रित किया और नकुल तथा सहदेव का जन्म हुआ, महाराज पाण्डु की मौत का कारण भी वही श्राप है जो हिरण ने दिया था, हुआ ऐसा कि एक दिन राजा पाण्डु माद्री के साथ वन में सरिता के तट पर भ्रमण कर रहे थे, वातावरण अत्यन्त रमणीक था और शीतल-मन्द-सुगन्धित वायु चल रही थी, वायु के झोंके से माद्री का वस्त्र उड़ गया, इससे पाण्डु का मन चंचल हो उठा और वे मैथुन मे प्रवृत हुये ही थे कि श्रापवश उनकी मृत्यु हो गयी।माद्री उनके साथ सती हो गई किन्तु पाँच पुत्रों के पालन-पोषण के लिये कुन्ती हस्तिनापुर लौट आई, सज्जनों! ऐसे कष्टों से भरा जीवन जीने के बाद भी भगवान् से माता कुन्ती अपने लिये कष्ट माँगती है, ऐसी वीर माता के जीवन चरित्र को हमें अपने जीवन में धारण करना चाहियें, गये शुक्रवार को हमने माता देवहूति के जीवन चरित्र के दर्शन किये थे, जो भगवान् कपीलजी और सती अनुसूइयाजी की माताश्री भी थी, भाई-बहनों! ऐसी पोस्ट करने का मेरा मकसद ही यहीं है कि शास्त्रों में वर्णित ऐसी वीर माताओं के जीवन चरित्र का हम दर्शन कर सकें और हम अपने जीवन में धारण करने की कोशिश करें, आज के पावन दिवस की पावन सुप्रभात् आप सभी के लिये मंगलमय् हो।जय श्री राधे-कृष्ण!ओऊम् नमो भगवते वासुदेवाय्

भाई-बहनों, आज हम पांडवों की माता कुन्ती के जीवन का दर्शन करेंगे,  By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब महाभारत युद्ध के बाद जब भगवान् श्री कृष्णजी द्वारिका जा रहे थे, तब भगवान् ने सभी को इच्छित वरदान दियें, जब माता कुन्ती से वर मांगने के लिये कहाँ गया तो माँ कुन्ती ने क्या मांगा? कुन्ती बोली- मैं क्या मांगूं गोपाल? मांगते तो वो हैं जिनके पास कुछ होता नहीं, जिसको सर्वस्व पहले ही मिला हुआ हो, वो क्या मांगे? कन्हैया बोले, कुछ तो मांगो बुआ, मेरा देने का मन है, कुन्ती ने तुरंत अपनी साड़ी के पल्लू को आगे कर लिया और देना चाहते हो तो गोपाल एक ही वर दे दो। विपद: सन्तु न: शश्ववत्तत्र तत्र जगद्गुरो। भवतो दर्शनं यत्स्यादपुनभ॔वदर्शनम्।। मेरे जीवन में विपत्ति पर विपत्ति आती रहें, एक विपत्ति दूर न हो दूसरी विपत्ति आ जाये, दु:ख पर दु:ख मेरे जीवन में आता रहे, भगवान् बोले, क्या मांग रही हो बुआ? दु:ख भी कोई मांगने की चीज है? कुन्ती ने कहा गोपाल जिस दु:ख में तुम्हारी याद आती है ना, वो दु:ख ही सबसे बड़ा सुख होता है, मेरे गोविन्द आवेश में आ गये और बोले, बुआ अब ये दु:ख मैं तुम्हें नहीं दे सकता, जीवन में दु:ख...