मकान चाहे.. कच्चे थे ,पर..रिश्ते सारे सच्चे थे..!!आज से पहले....दादी माँ बनाती थी.. रोटी !!पहली.. गाय की ,और आखरी.. कुत्ते की..!हर सुबह.. नन्दी आ जाते थे दरवाज़े पर.. गुड़ की डली के लिए..!कबूतर का.. चुग्गा ,चीटियों.. का आटा..!शनिवार, अमावस, पूर्णिमा का सीधा.. सरसों का तेल ,गली में.. काली कुतिया के ब्याने पर.. चने गुड़ का प्रसाद..!सब कुछ.. निकल आता था !वो भी उस घर से..,जिसमें.. भोग विलास के नाम पर.. एक टेबल फैन भी न था..!आज..सामान से.. भरे घरों में..कुछ भी.. नहीं निकलता !सिवाय लड़ने की.. कर्कश आवाजों के.!....हमको को आज भी याद है -मकान चाहे.. कच्चे थेलेकिन रिश्ते सारे.. सच्चे थे..!!चारपाई पर.. बैठते थे ,दिल में प्रेम से.. रहते थे..!सोफे और डबल बैड.. क्या आ गए ?दूरियां हमारी.. बढा गए..!छतों पर.. सब सोते थे !बात बतंगड.. खूब होते थे..!आंगन में.. वृक्ष थे ,सांझे.. सबके सुख दुख थे..!दरवाजा खुला रहता था ,राही भी.. आ बैठता था...!कौवे छत पर.. कांवते थेमेहमान भी.. आते जाते थे...!एक साइकिल ही.. पास था ,फिर भी.. मेल जोल का वास था..!रिश्ते.. सभी निभाते थे ,रूठते थे , और मनाते थे...!पैसा.. चाहे कम था ,फिर भी..माथे पे.. ना कोई गम था..!मकान चाहे.. कच्चे थे ,पर..रिश्ते सारे सच्चे थे..!!अब शायद..सब कुछ पा लिया है !पर..लगता है कि.. बहुत कुछ गंवा दिया!!! #Vnita🌹🙏🙏🌹#ॐ नमोनारायण
मकान चाहे.. कच्चे थे , पर..रिश्ते सारे सच्चे थे..!! आज से पहले....दादी माँ बनाती थी.. रोटी !! पहली.. गाय की , और आखरी.. कुत्ते की..! हर सुबह.. नन्दी आ जाते थे दरवाज़े पर.. गुड़ की डली के लिए..! कबूतर का.. चुग्गा , चीटियों.. का आटा..! शनिवार, अमावस, पूर्णिमा का सीधा.. सरसों का तेल , गली में.. काली कुतिया के ब्याने पर.. चने गुड़ का प्रसाद..! सब कुछ.. निकल आता था ! वो भी उस घर से.., जिसमें.. भोग विलास के नाम पर.. एक टेबल फैन भी न था..! आज.. सामान से.. भरे घरों में.. कुछ भी.. नहीं निकलता ! सिवाय लड़ने की.. कर्कश आवाजों के.! ....हमको को आज भी याद है - मकान चाहे.. कच्चे थे लेकिन रिश्ते सारे.. सच्चे थे..!! चारपाई पर.. बैठते थे , दिल में प्रेम से.. रहते थे..! सोफे और डबल बैड.. क्या आ गए ? दूरियां हमारी.. बढा गए..! छतों पर.. सब सोते थे ! बात बतंगड.. खूब होते थे..! आंगन में.. वृक्ष थे , सांझे.. सबके सुख दुख थे..! दरवाजा खुला रहता था , राही भी.. आ बैठता था...! कौवे छत पर.. कांवते थे मेहमान भी.. आते जाते थे...! एक साइकिल ही.. पास था , फिर भी.. मेल जोल का वास था..! रिश्त...